SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१८०) क्षेत्र महोदये यदाश्रितो देवगुरुः श्रवणादिक्रमादिदम् ||१८७॥ सुभिक्षं दशके ज्ञेयं पञ्चके रौरवं तथा । चतुष्के च सुभिक्षं स्यादष्टके युद्धरौरवम् ॥ १८८ ॥ स्वातिमुख्याष्टके जीवे त्वश्विन्यादिनिकेऽपि च । शनिराहुकुजैश्चैवं प्रत्येकं सहितो भवेत् ॥ १८६॥ सञ्चरते यदा काले सुभिक्षं जायते तदा । मृगादिदशके जीवे धनिष्टापञ्चकेऽथवा ॥ १६०॥ भौमादिसहितो गच्छेद् दुर्भिक्षं तत्र जाते । एकराशिगते चैव एक तु महद्भयन् ॥ १६९॥ मीनेऽपि कन्याधनुषोर्यदा याति बृहस्पतिः । त्रिभागशेषां पृथिवीं कुरुते नात्र संशयः ॥ १९२॥ अतिचारगते जीवे वक्रीभूते शनैश्चरे । हाहाभूतं जगत्सर्व रुण्डमाला महीतले ॥ १९३॥ पांच चार और अठ नक्षत्र पर बृहस्पति हो उसका फल - श्रवणादि दश नक्षत्र पर बृहस्पति हो तो सुभिक्ष, मृगशीर्वाद पांच नक्षत्र पर हो तो दुःख, मत्रादि चार नक्षत्र पर हो तो सुभिक्ष और चित्रादि आठ नक्ष पर हो तो युद्ध और दुःख कारक है ॥ १८७ ॥ १८८ ॥ T स्वातिको आदि लेकर आठ नक्षत्र और अश्विनी आदितीन नक्षत्र पर यदि शनि राहु या मंगल हो तथा इन प्रत्येक ग्रह के साथ वृहस्पति हो ॥ १८६॥ और इनके सहित गमन करे तो सुभिक्ष होता है । मृगशीर्वाद देश या धनिष्ठादि पांच नक्षत्र पर ॥ १६० ॥ मंगल के साथ बृहस्पति हो तो दुर्भिक्ष हो | यदि एकही राशि और एकही नक्षत्र हो तो महाभय हो ॥ १६९ ॥ मीन कन्या और धनु राशि पर बृहस्पति हो तो समस्त पृथ्वी को तृतीयांश करदे इसमें संशय नहीं ॥ १६२ ॥ बृहस्पति शीघ्र गतिवाले हो और शनि वक्रगामी हो तो समस्तं जगत् हाहाभूत हो और पृथ्वी पर रुडमुगड "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy