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________________ (१७८) मेघमहोदये मृगशीर्षे तथाायां यदि तिष्ठेद् बृहस्पतिः । सुभिक्षं लभते सौख्यं वृष्टिजातं सदा जने ॥१७६।। आदित्यपुष्याश्लेषासु गुरुभोगे प्रसङ्गिनी । अनावृष्टिर्भयं घोरं दुर्भिक्ष सर्वमण्डले ॥१७॥ मघायां पूर्वाफाल्गुन्यां यदा तिष्ठेद् बृहस्पतिः । . सुमित क्षेममारोग्यं देशयोग्य बहूदकम् ॥१७८॥ उत्तराफाल्गुनीहस्ते गुरौ वर्षा सुखं जने । चित्रायां च तथा स्वातौ विचित्रा धान्यसम्पदः ॥१७६॥ विशाखायां च राधायां सस्यं भवति मध्यमम् । .. मध्यमे च भवेद् वर्षा वर्षा सापि च मध्यमा ॥१८०॥ गुरोज्येष्ठामूलचारे मासद्धये न वर्षणम् । परतः खण्डवृष्टिः स्यान् नृपाणां दारुणो रणः ॥१८॥ जीवे पूर्वोत्तराषाढा-युक्त लोकसुखं मतम् । त्रिमासान् वर्षति घनो मासमेकं न वर्षति ॥१८॥ सुभिक्ष सुख और अच्छी वर्षा हो ॥१७६॥ पुनर्वसु पुथ्य और आश्लेषा नक्षत्र पर बृहस्पति हो तब अनावृष्टि घोरभय और सब देशमें दुष्काल हो ॥१७७।। मवा और पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र पर बृहस्पति हो तब सुभिक्ष क्षेम आरोग्य और देशके अनुकूल वर्षा हो ॥ १७८ ॥ उत्तराफाल्गुनी और हस्त नक्षत्र पर बृहस्पति हो तो वर्षा अच्छी तथा मनुष्यों को सुख हो, चित्रा और स्वाति नक्षत्र पर बृहस्पति हो तब विचित्र धान्यकी प्राप्ति हो ॥१७६॥ विशाखा और अनुराधा नक्षत्र पर बृहस्पति हो तो मध्यम धान्यकी प्राप्ति और चोमासे के मध्य में मध्यम ही वर्षा हो ॥ १८० ॥ ज्येष्टा और मूल नक्षत्र पर बृहस्पति हो तो दो मास वर्षा न हो, पीछेसे खण्डवृष्टि हो और राजाओंका घोर युद्र हो ॥ १८१ ॥ पूर्वाषाढा और उत्तानपाढा नक्षत्र पर बृहस्पति हो तो लोक सुखी, तीन महीना वर्षा और "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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