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________________ (१७४) मेघमहोदये राष्ट्रभङ्ग विजानीयाद् वैरोपद्रवसंकुलम् । रसादिसर्वसंयोगो घृततैलादिभाण्डकम् ॥१५॥ कर्पासादीनि वस्तूनि लाभं दथुने संशयः । मार्गादिमासाः सप्तव सर्वधान्यमहर्घता ॥१५४॥ सिंहराशिस्थगुरुवक्रफलम्सिंहराशिगतो जीवो विकारं कुरुते यदा । सुभिक्षं क्षेममारोग्यं सर्वलोकाः प्रहर्षिताः ॥१५॥ सर्वधान्यानि संगृह्य तुलाभाण्डानि यानि च । गतेषु नव मासेषु पश्चाद् विक्रयमादिशेत् ॥१५६॥ कन्याराशिस्थगुरुवक्रफलम्----- कन्याराशिगतो जीवो विकारं कुरुते यदा । अलाभं चैव लाभं च पुण्यकर्मवशात् पुनः ॥१५॥ तुलाराशिस्थगुरुवफलम् --- तुलाराशिगतो जीवो विकारं कुरुते यदा । पद्रव हो, रसादि सब वस्तु- घी तेल कपास आदि से निसंदेह लाभ हो और मार्गशीर्षादि सात मास सत्र धान्य भाव तेज रहैं ॥ १५३-४ ॥ इति कर्कराशिस्थगुरुकक फल ॥ जब सिंहराशिका बृहस्पति वक्री हो तब मुभिक्ष क्षेम आरोग्य और सब लोक प्रसन्न हो ॥ १५५ ॥ सब धान्योका और तुलाभांड का संग्रह करना, उसको नव महीने पीछे बेचनेसे लाभ होगा। १५६ ॥ इति सिंहराशिस्थगुरुवक फल ॥ ... कन्याराशिका बृहस्पति जब वक्री हो तब अपने पुण्यकर्मानुसार लाभालाभ होता है ।। १५७ ।। इति कन्याराशिस्थगुरु वक फल ।। ... जब तुलराशिका बृहस्पति वक्री हो तत्र तुलावर्तन सुगंधि वस्तु कपास और नमक ये सस्ते हों तथा मार्गशीर्ष बीतने बाद दश मास के उप "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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