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________________ (१७२) मेघमहोदये गुरुचरितविचारः स्फारयोधाय दृब्धः । इह मतिरतिशायिन्येव युक्ता प्रयुक्तादविकलफललामो वाक्यतोऽयं यतः स्यात् ॥१४२॥ इति नक्षत्रसंवत्सरलाभाय गुरुचारविचारः। . अथ गुरुवक्रविचारः । .. रौद्रीयमेघमालायां पुनर्विशेषः । मेषराशिस्थ्गुरुवंक्रफलम्--- अर्घकाण्डं प्रवक्ष्यामि येन धान्ये शुभाशुभम् । . वर्षाधिपसमायोगो यदा तिष्ठेद् बृहस्पतिः ॥१४३॥ मेषराशिगतो जीवो यदा स्यान्मीनसङ्गतः । तदाषाढश्रावणयोर्गामहिष्यः खरोष्ट्रकाः ॥१४४॥ एते महघेतां यान्ति मासद्धये न संशयः । पश्चाद् भाद्रपदे मासे आश्विने हे महेश्वरि ! ॥१४॥ चन्दनं कुसुमं वापि ये चान्येऽपि सुगन्धयः ।। तैलपण्यानि सर्वाणि मासद्धयं महघेता ॥१४६॥ किया, यह अतिशायिनी बुद्धिरूप कहे हुए वाक्यों से समस्तफलका लाभ होता है ॥१४२॥ इति मीनराशिस्थगुरुका फल । जिससे धान्यका लाभालाभ जाना जाता है ऐसे अर्घकाण्डको मैं कहता हूँ। जब बृहस्पति वर्षश हो या उसका योग हो तब शुभाशुभ फलका विशेष विचार करना ॥ १४३ ।। जब मेषराशिका बृहस्पति वक्री होकर मीनराशि पर हो जाय, तब आपाढ श्रावण में गौ भैस गधे और ऊंट ।। १४४ ॥ ये निःसंदेह दो मास महँगे हों. पीछे हे पार्वति! भाद्रपद और आश्विनमें ॥ १४५ ॥ चन्दन फूल तथा दूसरा जो सुगन्धित द्रव्य और तेलवाली बेचने की वस्तु ये सब दो मास तेज रहें ॥ १४६ ।। इति मेषसंशिस्थगुरुवक्री फल ||- ... "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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