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________________ (१५८). मेवमहोदय: লিনাহিংখল मिथुने समते जीवे ज्येष्ठाख्यवत्सरो भवेत् । यालानां दोषमश्वाना खण्डवृष्टिस्तदा वदेत् ॥४९॥ कर्कोटकस्तदा मेघो अण्डूपदो मतान्तरे। तस्करैः पीज्यते लोकः पापोपहतमान:॥५०॥ पश्चिमायां सिन्धुदेशे वायव्ये चोत्तरादिशि । चित्रा विचित्रा जायन्ते रोगाः पीडोत्तरापथे ॥५१॥ श्वेतवस्त्रं तथा कांस्यं कर्पूरं चन्दनादिकम् । मनिष्ठं नारिकेलं च पूगी स्वर्ण च रूप्यकम् ॥५२॥ मासानां पञ्चकं यावत् समर्घ चैत्रतो भवेत् । पश्चान्मह पूर्वोक्त-धान्यानां च समर्थता ॥५॥ पूर्वाग्निगाम्यनैऋत्या-मीशाने च सुभिक्षता। श्रावणे तु महत्कष्टं महिषीणां च हस्तिनाम् ॥५४॥ राजा स्वस्थः प्रजाघृद्धिः सुभिक्षं मङ्गलं भुवि । समर्थ तैलखण्डादिशर्कराधातवोऽपि च ॥५५॥ जब मिथुनराशिका बृहस्पति हो तब ज्येष्ठसंवत्सर कहा जाता है, इसमें बालकोंको और घोडेको रोग और खण्ड वर्षा हो ॥४६॥ व.कोटक नामका या गंडूपद नामका वर्षाद बरसे और लोक पापी मनवाले चोरोंसे पीडित हो ॥ ५० ॥. पश्चिममें सिन्धुदेशमें वायव्य और उत्तर दिशाके देशमें चित्र विचित्र रोग और उत्तर प्रदेश पीडा हो ॥ ५१ ॥ श्वेत. वास्त्र कशी कपूर चन्दन मॅजिठ श्रीफल सुपारी सोना और चांदी आदि ५२. ॥ चैत्रसे पांच महीने तक सस्ते हो. पीछे. पूर्वोक्त धान्यकी तेजी या समानता रहे ॥ ५३ ॥ पूर्व आय दक्षिग. नैर्ऋत्य और ईशानमें सुभिक्ष हो. श्रावण में भैंस और हाथिगेको वड़ा कष्ट हो ॥ ५४ ॥ राजा, स्वस्थ, प्रजामें वृद्धि और पृथ्वी पर सुभिक्ष तथा मंगल हो, तेल, खांड.. "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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