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________________ (१३८) . मेघमहोदये आश्विने मुंभिक्षं ततोऽपि किश्चिद्विग्रहः ॥ ३७॥ क्रोधिनि वत्सरे शनिः स्वामी, द्वादशमासेषु अन्नं महध, मध्यमः समयः, राज्ञां परस्परं विरोधः, प्रजा पापरता, लोका. निर्द्धनो व्यापारहीनाः, चैत्रे वा वैशाखे करकापातः, रोगो मारिभयं, ज्येष्ठे धान्यं मह, आषाढे समता, अल्पो मेघः, श्रावणे रौरवं, भाद्रपदे खण्डवृष्टिः, अन्नं महर्ष, आश्विने मेघवर्षा, सर्वत्र रसकससमता, अन्नं वस्तु सर्व समध, कार्तिके समता ॥३८॥ विश्वावसुवत्सरे राहुः स्वामी, वर्षासमता परं अन्नमहर्घता, चने राज्ञां विरोधः, धान्यं महर्घ, वैशाखे मण्डपदुर्गे विग्रहः, मरुदेशे दुर्भिक्षं, पश्चिमायां अन्नं महर्घ, ज्येष्ठे विग्रहोऽन्नस्य ४५ फदियानाणकैरेका कलशिका, आषाढेऽल्प. मेघः, श्रावणे भाद्रपदे दुर्भिक्षं ५५ फदियानाणकैरेका कणकलशिका, अन्यत्र देशे सुभिक्षं, आश्विने लोकपीडा, रोग बाहुल्यं, गोमहिषधोटकाजामहर्घता, सुवर्णादिधातुमहसुभिक्ष पीछे कुछ विग्रह हो॥ ३७॥ क्रोधीवर्ष का स्वामी शनि. बारह मास अन्नभाव तेज, मध्यम समय, राजाओं में परस्पर विरोध, प्रजा पाप कार्य में तत्पर, लोक धन रहित तथा व्यापार रहित, चैत्र वैशाखमें करकापात रोग और महामारीका भय, ज्येष्टमें धान्य महँगा । आषाढ में समभाव, थोड़ी वर्षा, श्रावण में दुःख, भादोंमें खण्डवृष्टि अनाजभाव तेज, आश्विनमें जलवर्षा, रसकसका भात्र समान और कार्तिकमें अनाजका भाव समान ॥ ३८ ॥ विश्वावसुवर्ष का स्वामी राहु, समान वर्षा, पीछे अनाज तेज, चैत्रमें राजाओं में बिगेध, धान्य तेज, वैशाखमें मण्डपदुर्गमें विग्रह, मरुदेशमें दुर्भिक्ष, पश्चिममें अनाज भाव तेज; ज्येष्ठमें विग्राह, फदिया ४५ का कलशी धान्य, आषाढमें थोड़ी वर्षा, श्रावण भादपदमें दुष्काल, फदिया ५५ का कणशी धान्य, अन्यत्र देशे सुभिक्ष; आश्विनमें लोकपीडा, रोग अधिक; गौ भैंस घोडा और मकरौं "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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