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________________ सकाराधिकार सपोरने किचिन्महता, ज्येष्ठमासे चतुर्गुणो लाभः, श्रापणापाढयोम॑धः, अन्नं सर्वत्र महर्घ, षड्गुणो लाभा, भाद्रपदेऽत्यन्तमेघः, सर्वधान्यसमर्घता, आश्विने मेघः कनकधाराभिः, कार्तिकादिमासचतुष्टये समता ॥१२॥ प्रमाथिनि रविः स्वामी, आषाढे श्रावणे चाल्पमेघः, भाद्रपदे पञ्चम्यां किश्चिन्मेघः, चैत्रे गोधूमयुगंधरीमहर्घता, वैशाखे ज्येष्ठे सर्व धान्यमहर्घता परं कृष्णसप्तम्घमावस्ययोमहामेघः, परमतीवारिष्टंकार्तिकादिमासपञ्चसु सर्वरसमहर्घता, मञ्जिष्ठापूगीहिङ्गलकाश्मीरजागरूपमूत्रनालिकेर एतद्वस्तुमहर्षता ।।१३।। विक्रमसंवत्सरे चन्द्रः स्वामी, राजा प्रजा सुखी, अतिमेघः, चैत्रे वैशाखे महर्षम्, अन्ने द्विगुणो लाभः,परं वैशाखे म्लेच्छभयाद नगर उद्वसत्वम्, अरण्ये वासः, वैशाखे दिनदश महान् वायुभूमिकम्पः प्रजापीडा, ज्येष्ठमासे दुचैत्र और वैशाखमें अन्न कुछ तेज, ज्येप्ने चौगुना लाभ, आषाढ श्रावण में वर्षा, अन्न सर्वत्र महँगे व्यापारियों को छतुना लाभ, भाद्रपद में अत्यन्त वर्षा सब धान मंदा, आश्विनमें मेव, कतिकादि चार मास समभाव हो ॥ १२ ॥ प्रमाथीवर्षका स्वामी रवि है, आपाट और श्रावणा में थोड़ी वर्मा, भाद्रपद पञ्चमीको कुछ वर्मा, चैत्रमें गेहूँ जुथार तेज, वैशाख ज्येष्टमें सत्र जगह धान्य तेज, पीछे कृण सहगी और अमावासमाको महामेव परन्तु भागे बहुत अरिष्ट, कात्तिकादि पांच मास सत्र रस महँगे, मैंजीर सुपारी हिंगलु केसर अगर वस्त्र और श्रीफल चे बस्नु तेज हो ॥ १३ ॥ विक्रम वर्षका स्वामी चन्द्र है, राना प्रजा मुखी, अतिवर्षा, चैत्र और वैशाखमें तेजी होनेसे अन्न से द्विगुना लाभ, वैशाखमासमें म्लेच्छोंके भयसे नगरका विनाश, जंगल में रहवास, वैशाग्य में दश दिन महावायु, भूमिकम्प और प्रनामी 1, जो साम। दुकाल, मायादो माहा उपात, श्राप गा. भादों "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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