SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२२) मेघमहोदये ऽरिष्टम्, कचिदुपात:, दर्शनिलोकस्य पीडा ॥५॥ अङ्गिरायांमङ्गलः स्वामी,चैत्रो वैशाखश्च मन्दः, ज्येष्ठे वायुः प्रयलः, आषाढे मेघबाहुल्यं, श्रावणादिमासत्रये रोगपीडा, कार्तिके सन्निनिष्यत्तिः,पौषादिमासत्रये करकान मेघवर्षा इत्यर्थः ।।। श्रीमुखे वुधः स्वामी, चैत्रे संवैधान्यं महम्, आषाढ कृष्णपक्षेऽत्यन्तं मेघवर्षा, श्रावणे गोधूमा महर्घाः, घृते धान्ये च द्विगुगो लाभा, वणिग्लोकपीडा, पश्चिमायां रौरव, पूर्वस्यांपरचक्र भयम्, उच्चमुलतानस्थले प्रजापीडा, भा. द्रपदे आश्विने च सर्वधान्यं सुभिक्षम्, कार्तिकादिमासत्रये पञ्चके वा सर्वरसानां सर्वधान्यानां महर्घता ॥७॥ भाववत्सरे गुरुः स्वामी, बहुक्षीरा गावो वर्षा बहुला, विंशोपिकाः पञ्चदश, सर्ववस्तुसमर्घता, उच्चनुलतानायोध्यासुराजड्विम्, लोकपीडा, घृतगुडाहिफेनपूगीमञ्जिष्ठामरिचदन्तवस्तुमहर्घम, कार्तिकादि दो म.स मंदा, पौवादि तीन मास अनिष्ट, कभी उत्पान और सन्यासिओंको पीडा हो ॥५॥ अंगिरावर्षका स्वामी मङ्गल है, चैत्र और वैशाख मंदा रहे, ज्येष्ठ में प्रबल वायु चलै, अाषाढ में वषी अधिक, श्रावणादि लीन मारत में रोगपीडा, कार्तिकमें सब धान्यकी निष्पत्ति और पौषादि तीन मास में मेत्रका अभाव हो !॥ ६ ॥ श्रीमुखवर्षका स्वामी बुध है, चैत्रमें सब धान्यकातेजनात्र हो, आपाढकृष्ण क्षमें बहुत वर्षा, श्रावणमें गेहूँ तेज, बी और धान्यमें द्विगुगालाभ, वणिकों को पीडा, पश्चिममें भयंकर पीडा, पूर्व में प. रचक्र शत्रुका भय, उच्चमुलतान्देशमें प्रजापीडा, भाद्रपद और आश्विनमें सत्र धान्य सस्ते, कार्तिकादि तीन मास में या पांच मासमें सब धान्य और रस तेज हो ॥ ७ ॥ भाववर्षका स्वामी गुरु है, गायें अधिक दूध दें, वर्षा अधिक, पन्द्रह विंशोपका, सब वस्तु समान बिक, उच्चमुलतान और अयोध्या राज विप्लव, लोकपीडा, घी, गुड, अफीम,मुपारी, मंजीट, मित्र और दान्त "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy