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________________ संवत्सराधिकारः प्रायो रोगातुरा लोका रक्ताक्षे भूमिकम्पनम् ॥५७॥ राजडम्बरदुर्भिक्षं विरोधोपद्रवाकुलम् | क्रोधने विषमं सर्व मरको म्लेच्छराजता ॥५८॥ मेदिनी कम्पते सैन्यात् कम्पन्ते च महीधराः । देशभङ्गाश्च दुर्भिक्षात् क्षयान्दे क्षीयते प्रजा ॥५९॥ इति तृतीया विंशतिका | क्वचिज्जडविलेखनाद् वचसि विभ्रमाद् वा कचिद् भ्रमादपि मतेस्तथा भवति पाठभेदो भुवि । तथाप्यवितथा कथा स्फुरतु वार्षिके निर्णाये, विशेषविदुषां मिथः कथनमेकमुत्पश्यतात् ॥ १ ॥ अथ विस्तरतः षष्टिवर्षाणां स्पष्टता फले । प्राचीनवचनैरेव गद्यरीत्या निगद्यते ॥ २ ॥ श्रीशङ्केश्वरपासाई - दृषभं प्रणमन् स्तुवन् । सांवत्सरफलं वच्मि प्रभवादिसमुद्भवम् ॥ ३ ॥ (११९) रसवाली और प्रफुल्लिन हो ॥ ५७ ॥ कीचनवर्षमें राजाओंका आडम्बर और दुष्काल हो; विरोव आदि उपद्रवोंसे व्याकुल ऐसा मरणतुल्य म्लेच्छ राज्य हो और सब विपरीत हो ॥ ५८ ॥ क्षयसंवत्सर में सैन्यके भारसे पृथ्वी और पर्वत कांपने लगे, दुष्कालसे देशका नाश और प्रजाका विनाश हो || ५६ ॥ इति तीसरी विंशतिका । कभी जडबुद्धिवालेके लिखनेसे, कभी वचनमें भ्रम हो जानेसे और कभी बुद्धिका भ्रम हो जानेसे बहुतसे पाठभेद हो जाते हैं, तो भी वर्ष संबंधी निर्णय में विशेष जाननेवाले विद्वानोंका यथार्थ कथन स्फुरायमान हो और एक ही कथन देखो ॥ १ ॥ अत्र साठ वर्षोंके स्पष्टफलको विस्तार से प्राचीन विद्वानोंके वचनानुसार गद्यरीति से कहा जाता हैं ॥ २ ॥ श्री शश्वरपार्श्वनाथ जिनेश्वरको वन्दन और स्तुति करके प्रभव आदि साठ संवत्सरों के फल "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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