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________________ (११२) मेघमहोदये जायन्ते सर्वसस्यानि गोधूमा व्रीहिरल्पकाः । इक्षुखण्डगुडा रोगा धातृसंवत्सरे क्वचित् ॥१०॥ सुभिक्ष क्षेममारोग्यं कर्पासस्य महर्घता । लवण मधुमद्यं च महर्घमीश्वरे भवेत् ॥११॥ . सुभिक्षं क्षेमता मार्गे प्रशान्ताः पार्थिवा यतः । तस्करोपद्रवो ग्रामे बहुधान्ये न संशयः ॥१२॥ राष्ट्रभङ्गश्च दुर्भिक्षं तस्करग्रहपीडनम् । डामरं विग्रहो मार्गे प्रमाथी जनमन्थनः॥१३॥ जायन्ते सर्वसस्यानि मेदिनी निरूपद्रवा । लवणंमधुमद्याज्यं समधु विक्रमे भवेत्॥१४॥महर्घमितिकचित् कोद्रवाः शालयो मुद्गाः कङ्गुमाषास्तिलादयः सुलभं च भवेत् सवे वृषभे वृषभाः प्रियाः ॥१५॥ चणका मुद्गमाषाद्या-स्तथान्यद्विदलं ध्रुवम् । महर्घ जायते सर्व चित्रभानौ न संशयः ॥१६॥ पैदा हों, इक्षु और गुड थोड़ा हो और कचित् रोगका संभव रहे ॥१०॥ ईश्वरवर्षमें सुकाल हो, माङ्गलिक कार्य और आरोग्य हो, कपास का भाव तेज हो, तथा लूण, मधु और मद्यका भाव भी तेज हो ॥ ११ ॥ बहुधान्यवर्षमें सुकाल हो, मार्गमें कल्याण हो, राजा शान्त रहें, गॉवमें चोरोंका उपद्रव हो इसमें संशय नहीं ॥ १२ ॥ प्रमाथीवर्षमें राष्ट्रभङ्ग और दुष्का ल हो, चोरों का उपद्रव हो, घोर विग्रह हो और मार्गमें लोग कष्ट पार्से ॥ १३ ।। विक्रमवर्षमें सब प्रकार के धान्य उत्पन्न हों, पृथ्वी उपद्रव रहित हो, लूण,मधु, मद्य और धी सस्ते हों ॥ १४ ।। वृषभवर्षमें वृषभ (बैल) प्रिय हो; कोद्रवा, चावल, मूंग, कंगु, उडद और तिल आदि सस्ते हों ॥ १५ ॥ चित्रभानुवर्षमें चणा, मूंग, उडद आदि सब द्विदलधान्य निश्चय से महँगे हों इसमें संशय नहीं ॥ १६ ॥ सुभानुवर्षमें सुकाल हो, बहुतधा-- "Aho Shrutgyanam
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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