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________________ मेघमहोदये सर्वजित्सर्वधारिणौ शुभौ, विरोधिविकृतखरा विरुद्धाः, नन्दनविजयजयमन्मथाः शुभाः, दुर्मुखो विरुद्धः, हेमलम्बिविलम्थौ शुभौ, विकारी विरुद्धः, शर्वरीप्लवशुभकृच्छोभनाख्याः शुभाः, क्रोधनो विरुद्धः, विश्वावसुः शुभः , पराभवो विग्रही ॥ इति द्वितीयविंशतिका ॥ . प्लवकीलको शुभौ, सौम्यः समः , साधारण विरोधिौ शुभौ, परिधावी विरुद्धः, प्रमाथी आनन्दश्च शुभः , रुधिरोद्गारीरक्ताक्षिक्रोधनक्षयाख्या विरुद्धाः ॥ इति तृतीयविंशतिका ॥ तत्र श्लोका अपि-यहुतोयधरा मेघा बहुसस्या च मेदिनी। प्रशान्ताः पार्थिवा लोकाः प्रभवे वत्सरे ध्रुवम् ॥१॥ सुभिक्षं क्षेममारोग्यं सर्वव्याधिविवर्जितम् । दुष्टतुष्टा जनाः सर्वे विभवे च न संशयः ॥२॥ सर्वजित् और सर्वधारीवर्ष शुभ हैं, विरोधी विकृत और खरवर्ष बि रुद्ध हैं, नन्दन विजय जय और मन्मथ शुभ हैं, दुर्मुख विरुद्ध है, हेमलम्बि और विलम्ब शुभ हैं, विकारी विरुद्ध है,शर्वरी प्लव शुभकृत् और शोभन ये शुभ हैं, क्रोधन विरुद्ध है, विश्वावसु शुभ है, पराभव विग्रह कारक है ।। इति दूसरी विंशतिका ॥ प्लवङ्ग और कीलक शुभ हैं, सौम्य समान है, साधारण और विरोधी शुभ हैं, परिधावी विरुद्ध हैं, प्रमाथी और आनन्द शुभ है, रुधिरोद्गारी रक्ताक्षि क्रोधन और क्षय ये वर्ष विरुद्ध हैं ।। इति तीसरी विंशतिका ॥ प्रभववर्ष में वर्षा अधिक बरसे निश्चयसे पृथ्वी पर धान्यविशेष हो, राजा और प्रजा प्रसन्न रहें ।। १ ॥ विभववर्ष में सुकाल हो, कल्याण तथा आरोग्य हो, सब व्याधियों से रहित हों और सब लोग प्रसन्न रहें इसमें संशय नहीं ॥ २ ॥ शुक्लवर्ष में मनुष्य घोड़ा और हाथी इनको अनेक "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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