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________________ (१०६) मेवमहोदये निरुपद्रवा भूपालाः सर्व सस्यं प्रजायते । साधारणे मेघवर्षा देशे स्यात् खण्डमण्डले ॥४॥ परस्परं विरोधः स्या-ज्जनानां भूभुजां तथा । कान्यकुब्जे त्वहिच्छत्रे कृषिनाशो विरोधिनि ॥५॥ अभिभूतं जगत्सर्व क्लेशैश्च विविधैः प्रिये । मारुतो बहुदाहश्च परिधाविनि सुव्रते! ॥॥ निष्पत्तिः सर्वसस्यानां सुभिक्षं जायते तथा । प्रमाशिवर्षे वर्षा स्याद् देशे वा खण्डमण्डले ॥७॥ नश्यन्ति सर्वधान्यानि सर्वसस्यमहर्घता।। घृतं तैलं सममूल्या-दानन्दे नन्दिता प्रजा ॥८॥२०॥ कोद्रवाः शालयो मुगाः पीड्यन्ते ते वरानने !। सौषधीनां धान्यानि राक्षसे निष्ठुरा जनाः ॥६॥ दुर्भिदं जायते देशे धान्यौषधिप्रपीडनम् । नश्यन्ति धनधान्यानि देवि ! ख्यातं नलाभिधे ॥१०॥ गोमहिष्यो विनश्यन्ति ये चान्ये नटनर्तकाः । सब धान्य उत्पन्न हो ॥४॥ विरोधिवर्षमें प्रजाका और राजाका परस्पर वि. रोध हो, कान्यकुब्ज और अहिच्छत्र देशमें खेतीका नाश हो ॥ ५ ॥ हे सुशीले प्रिये! परिधावीवर्षमें सब जगत् अनेक प्रकारके क्लेशोंसे व्याप्त हो, महा वायु चलै और बहुत दाह हो अर्थात् जगहँ जगहँ आग लगे ॥६॥ प्रमाथिवर्ष में सब प्रकारके धान्य पैदा हों, सुकाल हो, देश या प्रांतमें वर्षा हो || ७ ॥ मानन्दवर्ष में सब धान्य विनाश हों और तेज भी हों, घी तेलका भाव समान रहें, प्रजा आनन्दित रहें ॥८॥ हे वरानने! गक्षसवर्षमें कोद्रव चावल मूंग सब प्रकारके औषध और धान्यका विनाश हो, मनुष्य कर स्वभाव के हों ॥ ॥ ६ ॥ हे देवि! नलवर्षमें देश में दुष्काल हो, धन धाम्य और औषधियों का विनाश हो ॥ १० ॥ पिङ्गलवर्ष में गौ भैंस और नाच करने वाले नट "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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