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________________ संवत्सराधिकारः नलाब्दे मध्यसस्याचे वृष्टिभिः प्रवरा धरा । नृपसंक्षोभसंजाता भूरितस्करभीतयः ॥६॥ पिङ्गलाब्दे त्वीतिभीति-मध्यसस्याघवृष्टयः । राजानो विक्रमाक्रान्ता भुञ्जन्ते शत्रुमेदिनीम् ॥१८॥ वत्सरे कालयुक्ताख्ये सुखिनः सर्वजन्तवः । सन्तीतयोऽपि सस्यानि प्रचुराणि तथाऽगदाः ॥९९।। सिद्धार्थवत्सरे भूपाः शान्तवैरास्तथा प्रजाः सकला वसुधा भाति बहुसस्थार्घवृष्टिभिः ॥१०॥ रौद्रेऽब्दे नृपसम्भूत-क्षोभक्लेशसमन्विते । सततं त्वखिला लोका मध्यसस्यार्घवृष्टयः ॥१०॥ दुर्मत्यब्देऽखिला लोका भूपा दुर्मतयः सदा । तथापि सुखिनः सर्वे संग्रामाः सन्ति चेदपि ॥१०२॥ सर्वसस्ययुता धात्री पालिता धरणीधरैः । पूर्वदेशविनाशः स्यात् तत्र दुन्दुभिवत्सरे ॥१०॥ ॥६६॥ नलसंवत्सर में मध्यम धान्य हो, वर्षासे पृथ्वी श्रेष्ट हो, राजाओं में क्षोभ पैदा हो और चोरों का बहुत भय हो ॥६७॥ पिङ्गलवर्ष में ईति का भय हो, मध्यम वर्षा बरसे, राजा पराक्रमसे पूर्ण होकर शत्रु की पृथ्वी का भोग करें ॥ ६८ ॥ कालयुक्तवर्ष में सब प्राणी सुखी हों, ईति का उपद्रव हो तो भी धान्य बहुत हों और रोग अधिक हों । हह ॥ सिद्धार्थवर्ष में राजा और प्रजा शान्तवैर हों, सब पृथ्वी बहुत धन धान्य की वृद्धि और वर्घा से शोभायमान हो ॥ १०० ॥ रौद्रवर्ष में सब राजा क्षोभित और क्लेश वाले हों, सब प्राणियोंको भी क्लेश हो, मध्यम धान्य और वर्षा हो ॥ १०१ ॥ दुर्मतिवर्ष में सब लोक और राजा दुष्ट बुद्धि वाले हों तो भी सब सुखी हों और संग्राम भी हो ॥ १०२ ॥ दुन्दुभिसंवत्सर में पृथ्वी धान्य से पूर्ण हो, राजा अच्छी तरह पृथ्वीका पालन करें और "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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