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________________ ८० जन्मसमुद्रः भवेत् । वाथवा कणगोऽलीनां कर्कमकरवृषवृश्चिकाणानामेकतमे भे राशी, अङ्गे लग्नगते, च शब्दादमीषां भे राशौ त्रिकोणगे च नवमस्थे पञ्चमस्थे वा उग्रेक्ष्ये पापदृष्टे सति यो जातः स कुष्ठी ॥१२॥ धनु राशि के पांचवें नवमांश में रहा हुया चन्द्रमा को शनि या मंगल देखता हो या उसके साथ हो तो बालक कुष्ठी होवे । एवं लग्न में या नवें या पांचवें भवन में कर्क, मकर वृष या वृश्चिक राशि हो और उनको पाप ग्रह देखते हों तो जातक कोढ़ रोग वाला होवे ॥१२॥ अथान्धबधिरकुदन्तयोगानाह अन्धोऽर्कन्द्वारसौरैः स्वाष्टान्त्यारिस्थैर्यथा तथा । एतै स्त्रिधर्मध्यायस्थ-बधिरोऽस्तेऽथ कुद्विजः ॥१३॥ अर्केन्द्वारसौरैर्यथा तथा येन तेन प्रकारेण स्वाष्टान्त्यारिस्थैर्धनाष्टमव्ययषष्ठस्थैरन्धो नेत्रहीनो भवेत् । केन रोगेण भविष्यतीत्युच्यते। तेषां चतुर्णा मध्याद् यो वलवास्तस्य यो वातपित्तश्लेष्मणां मध्याद् दोष उक्तस्तेन प्रकुपितेनाक्षिविनाशो भविष्यतीत्यर्थः । एतैर्ग्रहैर्यथासम्भवं त्रिधर्मध्यायस्थैस्तृतीयनवमपञ्चमैकादशस्थैः शुभैरदृष्टैर्बधिरः कथमित्याह-एषां ग्रहाणां चतुर्णा मध्याद् यो बलवांस्तदुक्तदोषेण कर्णपीडा । अथैतरस्ते सप्तमस्थैः शुभादृष्टः कुद्विजो दन्तविकारीत्यर्थः ॥१३॥ सूर्य दूसरे, चन्द्रमा पाठवें, मंगल बारहवें और शनि छठे भवन में रहे हो तो जातक अन्धा होता है । इन चार ग्रहों में जो बलवान हो उस ग्रह की वात, पित्त, कफादि प्रकृति के अनुसार रोग की उत्पत्ति कहना । एवं सूर्य तीसरे. चन्द्रमा नवे, मंगल पांचवें और शनि ग्यारहवें स्थान में हो और उन्हें शुभ ग्रह देखते न हों तो जातक बधिर (बहरा) होवे । एवं सूर्य, चन्द्रमा, मंगल और शनि ये सातवें स्थान में हों, उनको शुभ ग्रह देखते न हों तो जातक को दांत की बीमारी होवे ॥१३॥ अथान्धपिशाचकुदन्तयोगानाह-- अन्धोऽर्केऽङ्ग हिभुक्ते च त्रिकोणस्थारसौरयोः । पिशाचोऽब्जे तु वोग्रेक्ष्ये गोऽजारस्त्राङ्ग कुदन्तकः ।।१४॥ .. अर्केऽङ्ग लग्नस्थे, अहिभुक्ते राहुग्रस्ते सति त्रिकोणस्थारसौरयोः त्रिकोणं नवपञ्चमं तत्र तिष्ठत इति यौ आरशनी तयोः सतोरन्धः । पुनरब्जे ग्रस्ते चन्द्र ग्रस्ते त्रिकोणस्थारसौरयोश्च पिशाचो राक्षसः। वाथवा गोऽजास्त्राङ्ग वृषमेषधनुषामेकतमे लग्ने उग्रेक्ष्ये पापदृष्टे सति कुदन्तको विरूपदन्तः ॥१४॥ .. "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
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