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________________ पंचम कल्लोलः १० वर्ष, शनि हो तो ७० वर्ष और बुध हो तो ८० वर्ष तक राज्य करे। उपरोक्त ग्रह केन्द्र में अपनी राशि के या किसी स्थान में रहे हए भी उच्च राशि के हों तो जातक मंत्री होता है ॥२५॥ अथ यत्रवयसि राज्यं भवेत् तद्भानमाह शीर्षपृष्टोभयक्षस्थाः केन्द्रजीवाङ्गराशिपाः । वयसोऽथादिमध्यान्ते राज्यार्थेशत्वसौख्यदाः ॥२६॥ जीवाङ्गराशिपा गुरुलग्नेशराशिपतयो यदि बलिष्ठाः केन्द्रशीर्षपृष्टोभयक्षस्था भवन्ति तदा वयसः आदिमध्यान्ते राज्यार्थेशत्वसौख्यदाः राजधनस्वामित्वसुखदातारो ज्ञेयाः। तद्यथा-यदि जीवः केन्द्र शीर्षरशिस्थो बलवांस्तदा वयस प्रादौ बाल्ये धनं वा सुखं च । सिंहकन्यातुलावृश्चिककुम्भाः शीर्षोदयाराशयो ज्ञेयाः। एवं गुरुः केन्द्र पृष्ठोदयराशिस्थो यदि तदा वषस्ये मध्ये तारुण्ये राज्यादिदाता । मेषवृषकर्कधनुर्मकराः पृष्ठोदयराशयो ज्ञेयाः । अथ यदि जीवः केन्द्रे उभयोदयराशिस्थो मोनराशिस्थो वयसोऽन्त्ये वृद्धत्वे राज्यधनठाकुरत्वसूखदाताः । एवं लग्नपतिः । एवं जन्मराशिपतिरवलोक्यो जीववत् । अथ यदि जीवलग्नेशजन्मराशिनाथा यथासम्भवं केन्द्रस्थिता भवन्ति ततः शीर्षपृष्ठोभयराश्यनुमानाद् वयसि राजधनादिदातारो जायन्ते ध्रुवम् । अपि शब्दो विभिन्न योगक्रमवाची ॥२६॥ बृहस्पति, लग्न का स्वामी और जन्म राशि का स्वामी ये केन्द्र में हों और शीर्षोदय राशि पर हो तो बाल्यावस्था में, पृष्ठोदयराशि के हो तो मध्यावस्था में और उभयोदय राशि में हो तो अन्तिम अवस्था में राज्य, धन, सुख और ऐश्वर्य प्रादि की प्राप्ति होती है। जैसे-बृहस्पति केन्द्र में हो और शीर्षोदय राशि पर हो तो बाल्यावस्था में, केन्द्र में रहा हा गुरु उभयोदय राशि पर हो तो मध्यावस्था में और केन्द्र में रहा हया गुरु उभयोदय राशि पर हो तो अन्तिम अवस्था में राज्य प्राप्ति धन सुख और ऐश्वर्य प्रादि की प्राप्ति होती है । मिथुन, सिंह, कन्या, तुला वृश्चिक और मकर ये शीर्षोदय राशि हैं। मेष, वृष, कर्क, धनु और मकर पृष्ठोदय राशि है और मीन उभयोदय राशि है ॥२६॥ अथ शास्त्रान्तराद् राजभङ्गयोगानाह __ सर्वे क्रूराः केन्द्रे नीचारिराशिगताः शुभैरदृष्टाः शुभो व्ययारिरन्ध्रस्थाश्च यदि भवन्ति तदा राजयोगभङ्गः । लग्ने सर्वग्रहादृष्टे सति भङ्गः । स्वांशे रवौ चन्द्र क्षीणे पापदृष्टे राजा पश्चाद्धृष्टः । केषूच्चेषु केषु स्वमूलत्रिकोणस्थेषु सत्सु राजा, परमनीचस्थेऽपि भङ्गः। केमद्रुमे चन्द्रे सर्वग्रहादृष्टे च भङ्गः । त्र्याधींचैर्भङ्गो यदि नोच्चै रवीन्दू स्याताम् । सारावलीयमिदम् "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
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