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________________ ५६ जन्मसमुद्रः जलस्थलरूपशुभपापग्रहद्विपदचतुष्पदसरीसृपोभयरूपानामेकतमरूपो भवेत् तत्सदृशवस्तुदेशस्तस्य दशमस्य राशेर्दशमपतेर्वा सहक् सदृशं यद्वस्तु यद्दे शरूपादिकं स्यात् ततोऽर्थलाभोऽस्ति । तस्य जातस्य तत्र पूर्वोक्तदेशंगतस्य भवतीर्थः । तु पुनर्नान्यथा । अनेन प्रकारेण नार्थलाभ इत्याह—यदि दशमस्य राशिपतिर्वा निर्बलो भवेत् ततस्तादृश वस्तुदेशादेर्थिलाभो भवति, किन्तु भोजनमात्रं स्याद् इत्यर्थः ।।२।। लग्न या चन्द्रमा इनमें जो बलवान् हो उससे दसवां स्थान की राशियां दसवां स्थान का राशिपति इनमें जो बलवान हो उसके अनुसार वस्तुओं से धन प्राप्त होवे । यदि दशम राशि या दशम राशिपति निर्बल हो तो धन का लाभ अधिक न होवे केवल उदर निर्वाह होवे ॥२॥ प्रसङ्गागतं सारावलीयं दशमस्य मेषादिराशिपत्योर्वर्गफलमुच्यते होराराशिनोर्बलवान् यस्तस्मात् कर्मगस्य यो राशिः स्यात् । यो बलयुक्तो वर्गस्तदधिपतौ वा तदादिशेद् वृत्तिम् ॥१॥ प्रसंगोपात 'सारावली' ग्रन्थ से दसम स्थान में रहे हए मेषादि राशि या मेषादि राशि के पति के अनुसार फल बतलाते हैं-लग्न या चन्द्रमा इनमें जो बलवान हो उससे दशम स्थान की राशि के वर्ग बल के अनुसार या राशिपति के अनुसार जातक की आजीविका कहना ॥१॥ आरामपत्रसेवाकृषिरसवणिगक्षदूतकार्येण । जीवन्ति नरा नित्यं मेषगरणे दशमराशिस्थे ॥२॥ यदि दसवें स्थान में मेष राशि हो तो पाराम पत्र सेवा, खेती, रस वणिक वृत्ति और दूत इत्यादि कार्यों से जातक जीवे ॥२॥ वृषभगणों दशमस्थे शकटचतुष्पदविहङ्गगृहजीवी । धान्यादिसंग्रहेण च जाङ्गलदेशे फलं भवति ।।३॥ दशम स्थान में वृष राशि हो तो गाड़ी, पशु, पक्षी, गृहजीवी और धान्य संग्रह आदि से जंगल प्रदेश में आजीविका करे । जलवणिजः सुसमृद्धा मुक्ताशंखप्रवालभाण्डैश्च । लिपिलेख्यगणितजीवी नृमिथुनवर्गे च दशमस्थे ॥४॥ दसम स्थान में मिथुनराशि हो तो जल, वणिक वृत्ति, मोती, शंख, प्रवाल, बरतन, लेखन विद्या और गणित विद्या इनके द्वारा धन उपार्जन करें॥४॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
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