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________________ ४८ जन्मसमुद्रः कुडयतः शम्याया विद्युतः, अद्र: पर्वतपाताद्वा कुड्यतो गृहभित्तिपाताद्वा मुत्युः ।।१२।। क्षीण चन्द्रमा को बलवान मंगल देखता हो और शनि पाठवें स्थान में हो तो भगंदर प्रादि रोग से गुह्य स्थान की पीड़ा से मत्य होवे । एवं क्षीण चन्द्रमा नवें स्थान में, मंगल पांचवें स्थान में, शनि पाठवें स्थान में और सूर्य लग्न में हो तो बिजली से, पर्वत से गिर कर या दीवाल आदि के गिरने से मृत्यू होवे ॥१२॥ अथ शैलजस्वजनोत्थमृत्युज्ञानमाह सूर्यारौ खाम्बुगौ शैलाद् द्वयङ्गाङ्गऽविधू जलात् । कन्यास्थौ पापदृष्टौ चेदर्केन्दू स्वजनादपि ॥१३॥ .. सूर्यारौ समकालौ खाम्बुगौ वा खं दशमं तत्र स्थितौ अम्बु चतुर्थं तत्र स्थितौ वा शैलात् शिलाया भवोऽयं शैलः तत् पाषाणान्मृत्युः। अथार्कविधू सूर्यचन्द्रौ अन्यशास्त्रदृष्टत्वाच्छनीन्दू वा द्वयङ्गाङ्ग द्विस्वभावलग्नस्थौ यदि ततो जलाज्जले मज्जनतो मृत्युः । अप्यथवार्केन्दू कन्यास्थितौ पापदृष्टौ चेद् यदि तदा स्वजनाद् विनाश: स्वकेन जनेन व्यापाद्यत इत्यर्थः ।।१३।। सूर्य और मंगल दोनों एक साथ दसवें स्थान में या चोथे स्थान में हों तो पर्वत से अर्थात् पाषाण से मृत्यु होवे । एवं सूर्य और चन्द्रमा अन्य शास्त्र के अनुसार शनि और चन्द्रमा ये द्विस्वभाव राशि के होकर लग्न में रहे हों तो पानी से मृत्यु होवे। सूर्य और चन्द्रमा कन्या राशि में हों और उनको पापग्रह देखते हों तो अपने घर के मनुष्य के हाथ से मृत्यु होवे ॥१३॥ अथ शस्त्राग्निराजकोपगुप्तिकृतमृत्युज्ञानमाह कामेऽऽम्बुनि भौमे खे शनौ शस्त्राग्निराधः । भुजंगनिगडत्र्यंशैरष्टस्थैर्गुप्तितोऽस्ति सः ॥१४॥ कामे सप्तमस्थेऽर्के अम्बुनि चतुर्थस्थे भौमे, खे दशमस्थे शनौ सति शस्त्राग्निराट, धः शस्त्रात् खड्गकुन्ततोमरादितोऽग्नितो वा राट्क्रुधः राज्ञो या क्रुट् कोपस्तस्माद्वा मृत्युः । अथ भुजङ्गनिगडत्र्यशैर्भु जगनिगडनामद्रेष्काणरष्टमस्थैर्गुप्तितोऽस्ति भवने निगडबद्धस्येत्यर्थः। भुजङ्गनिगडनामानौ द्रेष्काणौ कथं ज्ञेयावित्याह-वृश्चिकस्यद्यो द्रेष्काणो द्वितीयो वा, मीनस्य तृतीयो वा भुजंगनामा ज्ञेयः । मकरस्याद्यो द्रेष्काणो निगडनामा ज्ञेयः । स द्रेष्काणो जन्मलग्ने यदि भवति तदाष्टमे स ज्ञेयस्तैः द्रष्काणैरष्टमस्थैर्बन्धाद् गुप्तिगृहगतस्य मृत्युः ।।१४।। "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
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