SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४० जन्मसमुद्रः स्तस्त्र योगे जातस्य ये ग्रहा रिष्टकरास्तेषां मध्ये यो बलवान् स यत्र राशौ तिष्ठति स यदि राशिर्बलिनो भं स्थानं तत्र गते चन्द्र चारक्रमेण पापदृष्टे वर्षमध्ये नाश: । अत्र प्रतिमासं वर्ष यावच्चन्द्रमसा सह सर्वाण्येव स्थानानि ज्ञातव्यानि ॥७॥ चन्द्रमा जिस राशि पर हो, उसी के अन्तिम नवमांश में हो और उसको कोई शुभ ग्रह देखता न हो, तथा पाप ग्रह नवें और पांचवें स्थान में हो तो शोघ्र मृत्यु कहना। जन्म के समय चन्द्रमा जिस राशि पर हो वह अपनी स्वराशि है, उसमें चन्द्रमा जब प्रावे और पाप ग्रह देखे तो मृत्यु कहना । अरिष्टकारक ग्रहों में जो ग्रह बलवान हो, उस बलवान ग्रह की राशि पर चन्द्रमा आवे और पाप ग्रह देखते हो तो उसी वर्ष के मध्य में जातक की मृत्यु कहना ॥७॥ अधुनारिष्टयोगभंगज्ञानमाह - रिष्टहा केन्द्रसद्वीक्ष्यो बलोज्यो वाङ्गपोऽङ्गगः । केन्द्रगो वा भप: सदा सत्र्यंशेऽयष्टग : शशी ।।८।। इज्यो बृहस्पतिर्वाङ्गपो लग्नेशो वा भपो यत्र राशौ चन्द्रस्तस्य नाथो भपो राशिपतिः, वाशब्दाच्छुभो वा शशी पूर्णेन्दुर्वा, अमीषां यो बली बलवान् पुष्टोऽथवा केन्द्रसद्वीक्ष्यः केन्द्रस्था ये सन्तः शुभास्तैर्वीक्ष्यो दृष्टः सन्नमीषां पञ्चानां यः कोऽप्यस्ति स रिष्टहा रिष्टं हन्तीति सः । अथवामीषां योऽङ्गगः लग्नस्थः केन्द्रसद्वीक्ष्यः केन्द्रस्थशुभग्रहदृष्टो बलवान् बली रिष्टहा। अथवा यत्र तत्र गतो बलिष्ठः सन् शुभग्रहः केन्द्रसद्वोक्ष्यः सन् रिष्टहा स ग्रहः स्यात्, तदा रिष्टं भवतोत्यर्थः । वा चन्द्रोर्यष्टगः षष्ठाष्टमस्थः सत्र्यंशे सतः शुभस्य त्र्यंशे द्रष्काणे गतश्च रिष्टहा ।।८।। बलवान् बृहस्पति, लग्न में रहा हुअा लग्न का स्वामी. जिस राशि पर चन्द्रमा हो उस राशि का स्वामी और पूर्ण चन्द्रमा इनमें जो बलवान हो उसको केन्द्र में रहे हए शुभ ग्रह देखते हो तो अरिष्ट योग का नाश होगा। अथवा उनमें से जो लग्न में रहा हो उसको केन्द्र में रहे हए शुभ ग्रह देखते हो तो अरिष्ट योग का नाश कहना। अथवा कहीं भी रहे हुए बलवान शुभ ग्रह को केन्द्र में रहे हुए शुभ ग्रह देखते हों तो अरिष्ट योग का भंग कहना । अथवा छठे या पाठवें स्थान में रहा हा चन्द्रमा यदि शुभ ग्रह के ट्रेष्काण में हो तो अरिष्टयोग का नाश होता है I अथारिष्टभंगान्तरमाह पूर्णेन्दुः शुभभाशे वा सवा चेन्दुः शुभान्तरे । मेशाद् भूपचयस्थोऽयं वेन्दो: सौम्यास्तु षत्रये ॥६॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy