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________________ द्वितीय कल्लोलः जायेते । चन्द्र सेज्ये सगुरौ अन्यराशिस्थे सति न जारजः । वाथवा चन्द्र इज्यवर्गे गुरोः षड्वर्गे सति न जारजः किन्तु निजाङ्गज एवेत्यर्थः ।।४।। सूर्यं तिर्यग्राशि पर हो अर्थात् मेष, वृष, सिंह, धन का उत्तरार्द्ध और मकर का आदि इनमें से किसी राशि पर हो और अन्य ग्रह ( चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि) द्विस्वभाव राशि ( मिथुन, कन्या, धन और मीन) पर हो तो नाल से लपटे हुए दो बालक का जन्म कहना । गुरु के साथ चन्द्रमा अन्य राशि का हो, अथवा चन्द्रमा गुरु के षड्वर्ग में हो तो संतान दूसरे से उत्पन्न हुआ न कहना किन्तु अपने पति से उत्पन्न हुआ कहना ॥४॥ अथ जारजातज्ञानमाह अङ्ग चेन्दु द्वयं चेन्दु सार्क वेज्यो न वीक्षते । वेन्द्रकौं सखलौ पश्येद्वा न चेज्जारजोऽङ्गजः ॥५॥ . इज्यो गुरुः, अङ्ग लग्नं चेन्दु चन्द्र वाथवा द्वयं लग्नं चन्द्र च एकस्थं पृथक्स्थं वाथवेन्दु ं सार्क ससूर्यं चेद्यदि न वोक्षते न पश्यति तदा जारजातः । वाथवेन्द्वकौं चन्द्रसूर्यौ सखलौ शनिकुजयुक्त एकराशिस्थौ स्याताम्, अथ चेद्गुरुर्नपश्येत् ततः सोऽपि । वाथवा गुरुश्चन्द्रार्कौ सशुभौ पश्येद् प्रर्थान्तरात् पूर्वोक्तयोगान् पश्येत् तदा स्वाङ्गजः ॥ ५॥ २१ वृहस्पति लग्न को या चंद्रमा को, अथवा लग्न और चंद्रमा दोनों को, अथवा सूर्य के साथ रहा हुआ चंद्रमा को देखता न हो तो बालक जार पुरुष से उत्पन्न हुआ कहना | अथवा एक राशि में रहे हुए सूर्य और चंद्रमा के साथ शनि या मंगल हो और उनको गुरु देखता न हो तो भी जार पुरुष से उत्पन्न हुआ कहना । तथा सूर्य और चंद्रमा शुभ ग्रहों के साथ हों और वृहस्पति देखता हो तो अपने पति से उत्पन्न हुआ कहना || ५ || अथ नौकागतजन्मद्वयं जलगतजन्मज्ञानंमाह - पूर्णेन्दौ स्वगृहेऽङ्ग े ज्ञे तूर्ये जीवे तरीं गतः । वाप्यङ्गस्ते विधौ नौस्थो वात्र खेऽम्बुन्यथा जले ॥६॥ पूर्णेन्दौ चन्द्रस्वगृहे कर्कस्थे सति ज्ञे बुधेऽङ्गो लग्नस्थे च जीवे गुरौ तुय चतुर्थे सति तरीगतो बेडामध्यगतो भवेदित्यर्थः । वाथवाप्येऽङ्ग जललग्ने मकरपाश्चात्याद्ध कर्कमीनजलराशीनामेकतमे लग्ने, विधौ चन्द्रेऽस्ते सप्तमस्थे सति नौथो बेडामध्ये । वाथवा चन्द्र जलराशौ च खे दशमस्थे विधौ चन्द्र जलराशाचम्बुनि चतुर्थस्थे सति जले जलपार्श्वे जात इति ॥ ६ ॥ पूर्णचंद्रमा कर्क राशि में हो, बुध लग्न में हो और गुरु चौथे स्थान में रहा हो ऐसा लग्नवाले बालक का जन्म नाव में हुआ कहना । श्रथवा जलचर (मकर का उत्तराद्ध, कर्क और मीन राशि का लग्न हो और चंद्रमा सातवें स्थान में रहा हो तो नाव में जन्म कहना । "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
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