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________________ प्रथम कल्लोलः शुभा ग्रहास्तैरीक्ष्ययोर्ह ष्टयोः कुदृक्, कुत्सिता दृक् दृष्टिर्यस्य सबुद्बुदाक्षः । अथवार्कचंद्रयो रेकेन दृष्टे परेण युक्ते सिंहलग्ने पुष्पिताक्षः परं कुजदृष्ट्या एषु योगेषु पूर्वोक्तं फलं वाच्यम् । अर्थवशादर्के चन्द्र वा शुभदृष्टे याप्यः । एवं चतुर्दशयोगाः || २४| १५ सिंह राशि का सूर्य होकर लग्न में बैठा हो, उसको मंगल और शनि देखते ।१। अथवा सिंह लग्न हो और सूर्य बारहवें स्थान में हो और शनि, मंगल देखते हों |२| अथवा सिंह लग्न से भिन्न दूसरा कोई भी लग्न हो उसमें या बारहवं स्थान में सूर्य बैठा हो उसको शनि और मंगल देखते हों तो वह बालक दाहिनी प्रांख से कारणा होता है । ३-४| इसी प्रकार क्षीण चंद्रमा सिंह लग्न में रहा हो उसको शनि और मंगल देखते हों । ५ । अथवा सिंह लग्न हो और चंद्रमा बारहवें स्थान में हो उसको शनि और मंगल देखते हों । ६ । अथवा सिंह लग्न से भिन्न अन्य कोई लग्न हो और चन्द्रमा लग्न में या बारहवें स्थान में बैठा हो उसको मंगल और शनि देखते हों तो बालक बांयीं प्रांख से कारणा होता है 19-51 सिंह लग्न में या बारहवें स्थान में सूर्य और चद्रमा रहा हो उसको शनि और मंगल देखते हों तो वह बालक जन्म से ही अन्धा होता है ।६ - १०1 सिंह लग्न में या बारहवें स्थान में सूर्य और चंद्रमा रहे हों, उनको मिश्र ग्रह अर्थात् पाप ग्रह और शुभ ग्रह दोनों देखते हों वह बालक खराब नेत्र वाला होता है । ११-१२। अथवा सूर्य और चन्द्रमा इन दोनों में से एक सिंह लग्न में हो और दूसरा लग्न को देखता हो तो नेत्र में फूला होने का योग कहना | १३ | यदि मंगल देखता हो तो पूर्वोक्त फल कहना । यदि सूर्य या चन्द्रमा को शुभ ग्रह देखते हों तो नेत्र रोग कुछ समय के बाद मिट जाता है | १४ ||२४|| अथ होनाङ्गयोगमाह- पापेन्द्वीक्ष्ये शुभादृष्टे लग्नादित्र्यंशगे कुजे । तत्काले विशिरोबाहु-क्रमः स्यात् क्रमतो ध्रुवम् ||२५|| कुजे मङ्गले क्रमेण लग्नादित्र्यंशगे सति बालो विशिरोबाहुक्रमः स्यात् । तद्यथा-लग्नस्य प्रथमे द्रेष्कारणस्थे कुजे पापेन्द्वीक्ष्ये रविशनिचन्द्र दृष्टे शुभैरदृष्टे तत्काले विशिरा विगतं शिरोमस्तकं यस्य सविशिराः । एवं द्वितीयद्रष्कारणस्थे कुजे विबाहुः, विगतौ बाहू भुजौ यस्य स विबाहुः । अथैवं लग्नात् तृतीयद्रष्कारणस्थे कुजे विक्रमः स्यात् भवेत् । विगतौ क्रमौ पादौ यस्य स गत पाद इत्यर्थः ।। २५ ।। लग्न के प्रथम द्रष्कारण में यदि मंगल हो उसको सूर्य, शनि और चन्द्रमा देखते हों, दूसरा कोई शुभ ग्रह न देखता हो तो वह बालक मस्तक रहित होता है । एवं मंगल लग्न के दूसरे द्रेष्काण में हो उसको सूर्य, शनि और चंद्रमा देखते हों और शुभ ग्रह कोई न देखता हों तो वह बालक भुजा रहित होता है । यदि मंगल लग्न के तीसरे द्रेष्काण में हो उसको सूर्य, शनि और चंद्रमा देखते हों, शुभ ग्रह कोई न देखता हो तो वह बालक पैर रहित होता ॥२५॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
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