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________________ प्रथम कल्लोल: ५ एतत्क्रमेण मासेशाः प्रथमादिमासानामीशा: स्वामिनो ज्ञेयाः। सितारेज्य इति शुक्र कुजगुरुसूर्यचन्द्रशनिबुधलग्नपतिचन्द्रसूर्याः। एषां मध्याद्यो बलवानाधानकाले स ग्रहो निजमासे गर्भवृद्धिहेतवे भवति । परं योऽबली निर्बलस्तत् काले ग्रहपीडितः स स्वमासे गर्भपतनाय गर्भश्रवाय । तत्र प्रथमे मासि शुक्रशोणितमेलः। द्वितीयेमासे काठिन्यं । तृतीये समचतुरस्रमांसं । योऽप्याधाने ग्रहो बलवान् तदुत्तरेऽस्य दोहलो जायते गुविण्या, हस्ताद्यवयवांकुरोत्पत्तिः। चतुर्थेऽस्थिशिरा स्नायुसम्भवः । पञ्चमे मज्जा च सम्भवः । षष्ठे रुधिररोमनखाः। सप्तमे चेतना । अष्टमे गर्भस्थोऽशनं करोति । कथयन्मासे भुक्तं तद्रसादिकं नाभिलग्नेन नालेन संक्रमते । तत्र मासे गर्भाधानलग्नपतिर्यो ग्रहः स मासपतिः। नवमे स्पर्शःपयोधरवयः। दशमे उद्घाटितपूर्णावयवदेहः प्रसूते । तदयं विशेषो यद्गर्भमासस्वरूपमुक्तम् ॥६॥ शुक्र, मंगल, गुरु, सूर्य, चन्द्रमा, शनि, बुध लग्नपति चन्द्रमा और सूर्य ये गर्भ के दश महिनों के स्वामी है। इनमें से जो ग्रह गर्भाधान समय में बलवान हो, वह ग्रह अपने मास में गर्भ की वृद्धि करता है और निर्बल हो तो अपने मास में गर्भ का पात करता है। गर्भ प्रथम मास में वीर्य और रुधिर का मिश्रित रूप रहता है। दूसरे मास में कुछ कठिन पिण्ड बनता है। तीसरे मास में समचौरस मांस का पिण्ड रूप बनता है, तब माता को दोहद उत्पन्न होता है और हाथ आदि अवयवों के अंकुर उत्पन्न होते हैं। चौथे मास में हड्डी और नसों की उत्पत्ति होती है। पांचवें मास में मज्जा (चर्बी) बनती है। छठे मास में रुधिर बाल और नखों की उत्पत्ति होती है । सातवें मास में चेतना पाती है। आठवें मास में गर्भ में रहा हुअा जीव नाभि में लगी हुई नाल से रसादिक का आहार करता है। नवें मास में गर्भ हलचल करता है। दसवें मास में पूर्ण अवयव वाला शरीर बन कर जन्म लेता है ॥६॥ अथ गर्भिणीगर्भयोऽरिष्टयोगत्रयमाह वेन्दोः क्रूरे सुखे चारे रन्ध्र स्याद् गर्भिणीमृतिः। वास्तेऽर्केऽङ्ग कुजे शस्त्राद् वारे केऽन्त्ये रवौ तथा ॥७॥ 'वा' शब्देन लग्नपरामर्शः । लग्नादिन्दोश्चन्द्रराशेर्वा क्रूरे क्षीणचन्द्रकुजशनिसूर्यपापयुतबुधानामन्यतमे सुखे चतुर्थगे च परमारे भौमे रन्ध्रऽष्टमगते सति गभिणी मृतिः, सगर्भाया मरणं स्यात् । 'वा' अथवा अस्ते सप्तमगे अर्के अङ्ग लग्नगे कुजे शस्त्रादस्त्रकर्मणा मृत्युः । वा अथवा आरे कुजे 'के' चतुर्थगे 'अन्त्ये' व्यये रवौ यत्रतत्र क्षीणेन्दौ तथा तेन प्रकारेण मृत्युः ।।७।। लग्न से अथवा चन्द्रमा से क्षीण चन्द्रमा, मंगल, शनि, सूर्य और पापग्रह युक्त बुध इन पापग्रहों में से कोई एक पापग्रह चौथे स्थान में बैठा हो और मंगल आठवें स्थान में हो "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
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