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________________ ॐ अहं नमः। काशहदगच्छीय श्री नरचन्द्रोपाध्याय विरचितः स्वोपज्ञ बेडावृत्तियुतः जन्मसमुद्रः ( बेडाजातकम् ) प्रणम्य स्वगुरु भक्त्या चतुर्वर्गफलप्रदम् । तत्तुं जन्मसमुद्रार्थ वृत्तिबेडां करोम्यहम् ।। सतामयमाचारः सर्वत्र यदमी शास्त्रारम्भे स्वेष्टदेवतानमस्कारेण सर्वार्थसिद्धिं वाञ्छन्ति, तदयमपि नरचन्द्रोपाध्यायः स्वकृतजन्मसमुद्रस्य टीकां चिकिषु - रशेषविघ्नोपशान्तये श्रीमहावीरं स्तौति । चार वर्ग (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ) के फल को देने वाले अपने गुरुदेव ( श्री सिंह सूरि ) को भक्तिपूर्वक नमस्कार करके जन्म रूपी समुद्र को पार होने के लिए अर्थात् जन्म-समुद्र नामक ग्रन्थ के अर्थ को अच्छी तरह समझने के लिए बेड़ा (जहाज ) रूप वृत्ति को अथात् बेड़ा नाम की टीका को मैं (नरचन्द्रोपाध्याय ) करता हूं। सज्जनों का सदा यही शिष्टाचार है कि शास्त्र के प्रारम्भ में अपने इष्ट देवता को नमस्कार करके सर्व सिद्धि को प्राप्त करते हैं । इसलिए जन्म-समुद्र नाम के ग्रन्थ को करने की इच्छा वाले श्री नरचन्द्रोपाध्याय समस्त विघ्नों की शान्ति के लिए श्री महावीर देव की स्तुति करते हैं। तत्रायमाद्यः श्लोकः आश्रयः श्रेयसां सारो वरो विश्वेश्वरो वशी। सुरेशः सुस्वरो वीरः स श्रीवीरः शिवश्रिये ॥१॥ स श्रीवीरः स भगवान् महावीरश्चतुर्विशतितमस्तीर्थङ्करः शिवश्रिये अस्तु, कल्याणलक्ष्मीनिमित्ताय भवतु । श्रेयसां कल्याणानामाश्रयः स्थानं, सारो बलिष्ठः सर्वोत्कृष्टवीर्यत्वात् । वरः प्रधानः, गाम्भीर्यादि सकलगुणगणास्पदत्वात् । विश्वेषां स्वर्गमृत्युपातालानामीश्वरो विश्वेश्वरः, करतलामलकवत् परिज्ञात जगत्त्रयस्वरूपत्वात् । वशी जितेन्द्रियग्रामः, षडाभ्यन्तररिपुजयित्वात् । सुरेशः सुराणां समस्ततीर्थङ्कराणामीशः ईश्वरः अनवरत प्रसभभारती प्रसरत्वात् "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
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