SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ जन्मसमुद्रः मध्यम बली हो तो वह स्त्री, पुरुष की तरह प्रसिद्ध वक्ता होवे ॥१७॥ अथ यथास्त्रोदीक्षिता तं योगमाह पापेऽस्ते धर्मगस्थाभां दीक्षा गृह्णाति साप्यमी । विवाहे वरणे प्रश्ने जन्मन्यूहास्तु योगकाः ॥१८॥ पापेऽस्ते सप्तमस्थे सति धर्मगस्थो नवमस्थो ग्रहास्थाभा सदृशी दीक्षा व्रतं सा स्त्री गृह्णाति, यतो यदि सप्तमे क्रूरो नवमे च भवति तदा सप्तमस्थग्रहफलं न प्राप्नोति । अपि शब्दोऽथवा वाची । अमी योगा विवाहे परिणयने वरणे कन्यादाने प्रश्ने कन्या लाभालाभप्रश्ने जन्मनि जन्मकाले ऊह्या वितर्कगीया विलोकनीया अमी योगाः । प्रस्तावागत स्त्रीनक्षत्रलग्नादिफलं स्वकीयजन्मप्रकाशं मध्ये उक्तमस्ति तदत्र ज्ञेयम् । ग्रन्थविस्तारभयान्नोक्तम् ।।१८।। इतिश्रीकाशह्रदगच्छीयनरचन्द्रकृतायां जन्मसमुद्रविवृतौ स्त्रीजातककल्लोल: सप्तमः ।।७।। सातवें स्थान में पाप ग्रह हो और नवें स्थान में जो कोई भी शुभाशुभ ग्रह हो तो वह स्त्री नवें स्थान में रहे हुए ग्रह के अनुसार दीक्षा ग्रहण करे । यदि सप्तमे और नवें स्थान में पाप ग्रह हों तो सातवें स्थान में रहा हुआ ग्रह का फल नहीं मिलता । इस योग का विचार विवाह, कन्यादान, कन्या के लाभालाभ का प्रश्न और जन्म समय में करना चाहिए। विशेष स्त्री के नक्षत्र और लग्न आदि का फलादेश स्वकृत 'जन्म प्रकाश' नामक ग्रन्थ में देखो ॥१८॥ इति श्री नरचंद्रोपाध्याय विरचित जन्मसमुद्र के स्त्रीजातक लक्षण नाम का सप्तम कल्लोल समाप्त। "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy