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________________ boy.pm5 2nd proof १२. वनस्पतिकाय : साधारण पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, और वायुकाय इन चारों एकेन्द्रिय से वनस्पतिकाय का स्वभाव अलग है । वनस्पतिकाय दो प्रकार की है। १. साधारण २. प्रत्येक साधारण वनस्पतिकाय की विशेषता १. एक ही शरीर में अनन्त जीव होते हैं । २. एक साथ सभी का जन्म होता है, एक साथ सभी मरते हैं । ३. एक साथ ही श्वासोश्वास लेते हैं । ४. एक हॉल में ५,००० लोग एक साथ बैठते हैं, उसी तरह एक शरीर में अनन्त जीव रहते हैं। साधारण वनस्पतिकाय को अनन्तकाय नाम से भी जाना जाता है । साधारण वनस्पतिकाय को देखकर पहचानने के लिए चार लक्षण है। १. इस वनस्पतिकाय की नस, संधिस्थान और गाँठ स्पष्ट नहीं दिखते । २. हाथ से तोड़ते हैं तो इस वनस्पति के समान भाग होते हैं । ३. इस वनस्पति में तांता और रेसा देखने को नहीं मिलता । ४. इस वनस्पति को उखाडने के बाद फिर से बोया जाए तो उगने लगती साधारण वनस्पति का विशेष विचार क्यों किया जाता है, मालूम है आपको? इसलिए कि साधारण वनस्पतिकाय की पीड़ा या विराधना करते हैं तब हम अनन्त जीवों की पीड़ा या विराधना करने का पाप बाँध लेते हैं। एक ही गाँव में १० हजार लोग रहते हो, हमारा उसमें एक ही व्यक्ति के साथ झगडा हो उसके कारण गाँव के सभी लोगों को जला देते हैं तो हम अच्छे नहीं गिने जाते । हमको भूख लगती है, मनचाही वस्तु खाने का मन होता है तब साधारण वनस्पतिकाय से बनी कोई भी वस्तु खाते हैं तो हमको अनन्त अनन्त जीवों की हत्या का पाप लगता है। पेट भरने के लिए तो बहुत ही मजेदार वस्तुएँ मिलती है। साधारण वनस्पतिकाय वाली वस्तु खाकर हमको महाभयंकर पाप नहीं बाँधना है। ये द्रव्य अनंतकाय से पहचाने जाते हैं । भूमिकन्द, जमीन में उगनेवाले, आलू, प्याज, लहसण, गण, गाजर, मूला, पालख की भाजी विगेरे । ७. निगोद को साधारण वनस्पति कहते हैं । निगोद को समझने के लिए तीन मुद्दे । १. इस जगत में निगोद के असंख्य गोले हैं। २. हर गोले में निगोद के असंख्य शरीर है। ३. हर शरीर में निगोद के अनन्त जीव है। लील सेवाल, फूग में निगोद के जीव होते हैं । निगोद की विराधना यानी अनन्त जीवों की वेदना । निगोद को वेदना देना यानी महाभयंकर पापों का बन्धन । निगोद के जीवों की दया करे तो ही पाप से अटक सकते हैं। बालक के जीवविचार . १९ २० • बालक के जीवविचार
SR No.009505
Book TitleBalak ke Jivvichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamrativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2008
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size1 MB
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