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________________ गा.-१०३ बन्धशतकप्रकरणम् १०४ ठिबंधज्झवसायाण संतियं तंमि देसखेत्ताणं । तह कालभावजीवाण भेयउ असंखलोयाणं ॥१०८२॥ आगासपएससमा ठाणा अणुभागबंधया हुंति । ठिइबंधट्ठाणेसुं दुइयाइसु अहिगअहिगाणि ॥१०८३॥ अणुभागट्ठाणाणि य लब्भंति तओ उ तेहि किर ताणि । असंखेज्जगुणाई अणुभागट्ठाणाणि ई सिद्धं ॥१०८४॥ एएसिणंतगुणिया कम्मपएसा भवंति जेणेह । सिद्धाणणंतभागे अभव्वेहि अणंतगुणिया उ ॥१०८५॥ पइसमयं जीवेहिं य संगहिज्जति आगमे भणियं । अणुभागज्झवसायट्ठाणाणि य पुण समत्था वि ॥१०८६॥ अस्संखेया भणिया तेहिं तो जेण कम्मदेसाण । अणंतगुणत्तं सिद्धं एत्तोऽविभापलिच्छेया ॥१०८७॥ अणंतगुणिया हवंति इह दिटुंतो इमो उ विन्नेओ । जह सरसखीरपिचुमंदतणयरसथालियासु इव ॥१०८८॥ अणुभागबंधज्झवसायट्ठाणेहिं तु तंदुलेसु इव । कम्मपरमाणुसु रसो जणयइ एगेगयस्स वि य ॥१०८९॥ सो परमाणुस्स रसो केवलिपन्नाए छिज्जमाणो उ । सव्वजियणंतगुणिया जत्थ अविभागपलिच्छेया ॥१०९०॥ अइसुहुमयाइ जाओ भागाओ नेव उट्ठई भागो । अन्नो सो अविभागपलिच्छेओ होइ नायव्वो ॥१०९१॥ अणुभागस्स विभागो पलिछेया एयरूवया एए । परमाणु परमाणुं पड़ सव्वेसु कम्मखंधेसुं ॥१०९२॥ सव्वेसिं जीवाणं भवत्थअभवत्थयाणणंतगुणा । अविभागपलिच्छेया संपत्ता तो जओ भणियं ॥१०९३॥
SR No.009504
Book TitleBandhashataka Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay, Prashamrativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size1 MB
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