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बन्धशतकप्रकरणम्
तदुक्तम्
सव्वे विय अइयारा संजलणाणं तु उदयओ हुंति । मूलच्छेज्जं पुण होड़ बारसहं कसायाणं ॥१॥ इति गाथार्थः ॥ ८१ ॥
भा० केवलनाणविरहियं नाणाइवरणचउक्कयं भणियं । केवलदंसणरहियं भणियं दंसणतिगं चेत्थ ॥७०६ ॥
मइनाणाइचउक्कं केवलआवरणमुक्कनाणस्स । देसे हणईई देस घाइ तह नाणचउगस्स ॥७०७ ॥
विसए भूए अत्थे जं नो पेक्खड़ तत्थ किर उदओ । मइनाणप्पभिईणं अविसयभूए उ पुण तेसिं ॥ ७०८॥ अत्थे उ जं न पस्सइ सो केवलनाणवरणओ उदओ । एवं केवलदंसणछ ( थ )क्कं नाणस्स देसं तु ॥७०९ ॥ हणइ तो देसघाई विसए दंसणतिगस्स अत्थे उ । जं नो पस्सइ तत्थ उ दंसणतियगस्स उदओ ॥७१०॥ सिं अविसयभूतगुणे जं न पस्सए जीवो । तर्हि उदओ केवलदंसणस्स नाणीहिं किर भणिओ ॥७११॥ तह अंतरायपणगे आइमचउगस्स जे उ किर दव्वे । गहणधारणजोगे ते विसए हुंति किर ते वि ॥७१२॥
१. सर्वेऽपि चातिचाराः सज्ज्वलनानां तूदयतो भवन्ति । मूलच्छेद्यं पुनर्भवति द्वादशानां कषायाणाम् ॥ १॥
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गा.-८१
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