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________________ आ पुस्तक वांच्या पहेला हुँ आ बधी वातोथी अनजान हती के आदुनियामां करेलुं पापचालेछ। अम पापनी दुनियामां केटला आगळ जता रह्या छी । अमने आटलो सरस श्री जैन धर्म मळ्यो छे ते पापोना प्रायश्वित पण 'मिच्छामि टुक्कडम् द्वारा करी शकीले । ज्यां आटलो सरस धर्म मळ्यो छे त्यां आटलु पाप करीओ तो आंखमांथी पाणी आवी जाय, अ कोण पहेलो इन्सान हशे जेणे रात्रिभोजन चालु कर्यु | कोण हशे जे अमने पापना मार्गमां लड़ गयो। हवे तो अटला आगळ जता रह्या छीओ के पाछा आवी जशुं अमना पालन करता पुरी कोशीश करीश के ""हे प्रभुजी ! नहिं जाऊँ नरक मोझार" आ बधाहौशे-होशे अने हसतां-हसतां बांधेला कर्मोनो हिसाब तारे ज चूकते करवो पडशे । अने तेनो हिसाब आ पृथ्वी पर ज नहीं पण कर्मसत्ता ते हिसाब चूकववा नरक पृथ्वी पर धकेली देशे... ! त्यांना सतत त्रास, दुःख अने यातनाओनुं वर्णन श्री सर्वज्ञ परमात्मा शास्त्रोमां वर्णट्युं छे । तेनो यत्किंचित् चितार रजुकरतुं पुस्तक अटले हे प्रभुजी ! नहिं जाऊँ नरक मोझार" आ पुस्तकथी अमने घणुं अभिप्राय मळ्युं । आ पुस्तकथी अमने घणी वातो खबर पडी। अमने खबर पडी के शुं पाप छे ? रात्रिभोजन, परस्त्रीगमन, बोळ अथाj, अनंतकायभक्षण इत्यादि नरकना मुख्य द्वार छ। अमने खबर पडी के झूठ, चोरी, परिग्रह, मैथून, लोभ, मोह इत्यादि पापछे, पण चोरी तो झूठथी महापाप छ । अमे विमलप्रभविजय म.स.ना आभारी छीओ जेमणे आ बुक लखी अने बधा पापना बारामां बताटयुं । "हे प्रभुजी ! नहिं जाऊँ नरक मोझार" इस पुस्तक में शुभ अशुभ कर्म बंधन का सजीव और आकर्षक वर्णन करते हुअनारकीय कष्टों का चित्रों द्वारा प्रत्यक्ष दिग्दर्शन कराया गया है। मानव जीवन को पापों से बचते रहने और पुण्य उपार्जन कर नरक के कष्टों से दूर रहने के लिये जो गणिवर्यश्रीने प्रयास किया है वह अनुमोदनीय है। जैन समाज के प्रत्येक परिवार में ऐसा उपयोगी पुस्तक रहने से परिवार में पापाचार होने से रुकेगा और धर्म की और विशेष झुकाव बनेगा ! इस पुस्तक का हिन्दी भाषा में भी रुपांतर यदि हो तो विशेष उपयोगीता बढ़ सकती है। ""हे प्रभुजी! नहिं जाऊँनरक मोझार” आ पुस्तक खरेखर आत्माने झंझोरी नावेअकुंछ। पुस्तक वाचता नरक साक्षातकार लागे छे। हसता जे पाप कराय छे ते खरेखर रडतां छुटशे जे पाप करता हता अमां खरेवर हवे बहुज ओछा कराय अने कोइ पण पाप करतां पहेला आ पुस्तक आंखो समक्ष आवी जायजे अज्ञान जीवो छे तेमने ज्ञान पमाडवा माटे आ पुस्तक खुब ज सहायक छे। नाना बाळको पण चित्रो विगैरे जोइने पाप न करवानी प्रतिज्ञा करे छे। बाळको, वृद्धो अने युवानो बधा ज पुस्तक जोड्ने खुश । थाय अने दुःखी थाय के केटला पाप आ जीव वर्तमानमा पलपल, क्षण-क्षण करे छे? अने पुस्तक वांचीने आवी प्रतिज्ञा ले छे “हे प्रभुजी ! नहिं जाऊँ नरक मोझार” आ पुस्तक खुब ज सुंदर छ । म.सा.ने विनंती छे के आवी पुस्तको अने परीक्षाओ वारंवार लेवामां आवे। साभार स्वीकार "हे प्रभुजी ! नहिं जाऊँनरक मोझार"खरेखर नकर छे? त्यां केवा केवा प्रकारनां दुःखो होय ? नरकमा कोण जाय ? नरकमां न जवू होय तो शुं करवू ? आवी घणी बधी वातो समजावतुं पू.आ. कलापूर्ण सूरिजी म.सा.ना पू.ग । विमलप्रभविजयजी म.सा. लिखित उपरोक्त पुस्तकनुं विमोचन मौन अकादशीना शुभ दिने दादर आराधना भवन जैन संघमा थयेल । रु ७०/- नी किंमत धरावता आ पुस्तकमां १५० आसपास चित्रो छे । जेनी नीचे त्रणे भाषामां सारांश छे । आ पुस्तक खास वसाववा जे छ। जीव पाप करतां जराय अचकातो नथी। आ पुस्तक सारी रीते, सूक्ष्म रीते जाणकारी आपी अमारी उपर खूब उपकार करेलो छ । केटलाक पापोनी जीवनमां जरूर पण नथी होती तो पण जीव पाप करतो रहे छे । अंते अना परिणाम भोगवे छे । पुस्तक वांच्या पछी बधा पाप करता अचकाय। मोटापापर्नु सर्वथा त्याग करवू जोइओ। पुस्तकमां चित्रो होवाथी कोइने पण सारी रीते समझावी शकाय अने अमने पण पापर्नु डर लाग्युं । पू. गुरुवर, मत्थअण वंदामि, सुख-शातामां हशो। किंतूना प्रणाम स्वीकार करशोजी। आपे मने आ काम सौंपीने धन्य कर्यो छे । तेथी तमारो खूब खूब आभार, पण समयसर काम न थवाथी हुँ ‘मिच्छामि टुक्कडम् मांगु र्छ । संसारना कामोमां फसाइने, थोडी आळस राखीने आ काम मोडुं पुरुं कर्यु छे तेथी क्षमा मागुं छु। में आपनी चौपडी मारी माता पासे जोइ हती । पहेला ५-६ पानाज यांच्या हता। सहेज डर लागवाथी यांचन छोडी दीधुं हतुं । (71) है प्रभु ! मुझे नरक नहीं जाना है !!!
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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