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________________ (कुंभी) में उत्पन्न होते है। यह उनकी योनि जानो । वहाँ उत्पन्न होने के बाद अंतमुर्हत वह आला (कुंभी) छोटा और शरीर बडा हो जाता है। इसलिये उसमें रह नहीं सकते। तो नीचे गिरते है । वहाँ तुरंत ही परमाधामी आ जाते हैं और पूर्वकृत करम के अनुसार दुःख देते है। जैसे कि मदिरा पीने वालो को गरम शीशा पिलाया जाता है, परस्त्री पर नजर डालने वाले को गरम लोहे की पुतली से आलिंगन कराया जाता है। कूट सीमला के वृक्ष पर बिठाते हैं। लोहे के धण में रखकर पीटा जाता है। गरम तेल में डालते हैं | धानी में पीलते है। करवत से काटते हैं। शरीर में भाला पिरोते है। भट्टी में सेंकते हैं। पक्षी, सिंह, सर्प आदि के रुप बनाकर पीडा देते है। वैतरनी नदी में भीगोते हैं। असिपत्र बन और तप्त रेत में दौडाते हैं । वज्रमय कुंभी में तीव्र ताप में गर्म होकर नारकी उँचे ५00 योजन तक उछलती है और जैसे ही जमीन पर गिरती है परमाधामी और दुसरे नारक अलग अलग रुप लेकर दुःख देते हैं। उन नारकी जीवों को लडते झगडते देख परमाधामी और दुसरे नारक अलग अलग रुप लेकर दुःख देते हैं। उन नारकी जीवों को लडते झगडते देख परमाधामी खुश होते हैं, अट्टहास्य करते हैं, उनके पर वस्त्र उछालते है और नारकीओं को परस्पर झगडते देखने में जितनी प्रिती परमाधमीओं को होती है वैसी प्रिती उनको अच्छी रम्य सुंदर चीजें देखने में नहीं होती। ये परमाधामीपना पंचाग्नि प्रमुख कष्ट क्रियाओं से प्राप्त होता है। परमाधमी भव्य ही होते हैं वे भी मरकर अंडगोली होते है। ____९५) साते नरक पृथ्वी का पिंड और उसका आधार: धनोदधि-पिंड २० हजार योजन का है | धनवात, तनवात और आकाश का पिंड असंख्यात योजन से युक्त है। छानिछत्र आकारे सात मारकी नुं चित्र [स.गा. २१०३/२४] ----समभूतलाश्य "रत्नप्रभा नारक प्रतर-१३ १८००० यो. ३०वस्था नरपवास --लोक मक शार्कराममा ना. प्रवर-11 १३२००० यो. १५ लासन १५ लारवन. प्रतर-- चालुकाप्रभा ना. १२८००० यो.. १० लाखनप्रतर-3 -पकप्रभा ना. १२०००० यो. अधोलोक मध्य धूमप्रभा ना. ११८००० यो. बारबन. प्रतर-4 १९९९५ न. वमनमाना 17६००० यो. नरकाबास प्रनर-१ तमस्तक Page004 सभामम मालाम (61) हे प्रभु ! मुझे नरक नहीं जाना है !!!
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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