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________________ ७७) नरक दुःखो का विशेष स्थानांग सूत्र, भवभावना आदि ग्रंथो में है। अरे! इस तरह परमाधामी नारकों को मारते, पछाडते, काटते, तलते, जलाते, शेकते, पिघालते, छिन्न भिन्न कर देते है। फिर भी उनका शरीर पापों के उदय के कारण पारा के रस की तरह वापस इकट्ठा हो जाता है। बेचारे नारकों को मांगे मोत नहीं मिलती। वे जब तक आयुष्य पूर्ण नहीं होता मर नहीं सकते । जिस तरह दो मल्लों को आपस में लडते देख पापानुबंधी पुण्य वाले जीव खुश होते है, वैसे ही परमाधामी नारकों को परस्पर लड़ते देख मारामारी करते देख आनंदीत होते है। वे हर्षित होकर तालियाँ बजाते है। वस्त्र फेंकते है, अट्टहास्य करते है। ७८) परमाधामी नारकों को दुःख देकर आनंदित क्यों होते है ? प्रश्न : परमाधामी देव होने से उनके पास आनंदखुशी के लिये अनेक साधन होते हैं फिर इस तरह पर पीडा में आनंद क्यों लेते है ? उत्तर : उनको पापानुबंधी पुण्य आदि अनेक कारणों से ऐसे पाप कर्म में ही आनंद आता है । इसलिये आनंदप्रमोद के अन्य साधनों के होते हुए भी नारकों दुःख देते है, लडाते है और आनंद लुटते है। ७९) नारकों के आयुष्य की उत्कृष्ट स्थिति : तेष्वेक-त्रि-सप्त-दश-सप्तदश-द्वाविंशति-त्रयरिंगशत्-सागरोपमाः सत्वानां पर स्थितः ॥३-६|| भावार्थ : प्रथम नरक आदि में नारकों के आयुष्य की उत्कृष्ट स्थिति अनुक्रम से १,३,७,१०,१७,२२,३३ सागरोपम की है। उत्कृष्ट स्थिति अर्थात ज्यादा से ज्यादा स्थिति जिस स्थिति से ज्यादा अन्य स्थिति न हो वह अंतिम अधिक स्थिति उत्कृष्ट स्थिति कहते है। उपरोक्त श्लोक में मात्र उत्कृष्ट स्थिति का वर्णन है। ८०) कौन से जीव नरक से आये है और पुनः नरक में जायेंगे? अति क्रूर अध्यवसायवालो सर्प, सिंह, गीध, मछली आदि जीव नरक से आये और पुन: नरक में जायेंगे। ऐसा नियम नहीं है फिर भी उपर दर्शाये हुए कारणों से सामान्यतः ऐसा फलित होता है। ८१) नरक में क्या नहीं होता ? नरक में समुद्र, पर्वत, कुंड, शहेर, ग्राम, झाड, घास, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरेन्द्रिय, देव, मनुष्य, तिर्यंच आदि नहीं होते। ८२) देव नरक में क्यों और कैसे जाते है ? समुद्रघात, वैक्रिय लब्धि, मित्रता आदि कारणों से देव नरक में जाते है। केवलीसमुद्रघात् में केवली जीव के आत्मप्रदेश संपूर्ण लोकव्यापी बनते होने से सातों नरक में होते हैं। वैक्रिय लब्धि से मनुष्य और तिर्यंच नरक में जा सकते हैं । देवता पूर्वभव के मित्र को सांत्वना देने नरक में जाते हैं। सीताजी का जीव सीतेन्द्र, लक्ष्मणजी के जीव को आश्वासन देने चौथी नरक में गया था । परमाधामी देव नारकों को दुःख देने तीसरी नरक तक जीते है। ८३) नारकों की गति: नारक मरने के बाद वापस नरक में जन्म नहीं लेते। नरक में उनको बहुआरंभ, बहुपरिग्रह आदि नहीं होते । देवगति में जाने के कारण संयम, सराग आदि का नरक में अभाव रहता है। इसलिये वे देवगति में भी उत्पन्न नहीं होते। नरक में से निकलकर मनुष्य या तिर्यंच में जन्म लेते है। ८४) नरक की साबिती: प्रश्न : नरक गति प्रत्यक्ष दिखती नहीं है इसलिये है या नहीं कैसे कहा जाय ? उत्तर : नरक गति सर्वज्ञ भगवंतो को प्रत्यक्ष होती है। अपने को प्रत्यक्ष नहीं होती फिर भी यक्ति से उसे सिध्ध कर सकते है। नरकगति न हो तो अनेक प्रश्नो के उत्तर (57) हे प्रभु ! मुझे नरक नहीं जाना है !!!
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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