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________________ प्रासंगिक वक्त पूर्वभव में किये हुए अनेक दुष्ट और भयंकर आचरण से, क्रूरता से हिंसादि, झूठ बोलने से, चोरी, परस्त्रीगमन, धन प्रतेतीमूळ, जीवों का वध करनेवाले (गर्भपात) आदि पाप कर के नरक के आयुष्य का बंध करके नरक में पैदा होते हैं। क्षेत्र की, परस्पर की और परमाधामीकी ३ प्रकार की वेदना और १० प्रकार के क्षेत्र वेदना नरक में अनुभव होते हैं। शीत और उष्णवेदना अनंत गुणी उष्ण और शीतवेदना एकेक नरक के आगे तीव्र तीव्रतर, तीव्रतम हैं। नरक में सम्यग्दृष्टि और दूसरा मिथ्यादृष्टि है। मिथ्यादृष्टि : दुःख में निमित बनकर सामने वाले व्यक्ति पर क्रोध करते हैं और नये कर्मोका बंध होता है। सम्यग्दृष्टि: जीव नरकमें विचारते हैं कि में पूर्वभव का अनेक विध पाप प्रवृत्तिओं की है। उसका ये फल हैं :- पाप विपाकोके समभाव सहन करते हैं दूसरे का क्या दोष है। नर्क धरती के नीचे पाताललोकमें आई है। असंख्य योजन तक फैलाइ हुइ है। महाघोर पाप करनेवाले जीवो नरकमें जन्म लेते है । देवलोक में सुख प्राधान्य हैं । परंतु नरकमें उत्पन्न हुऐ जीवो को संपूर्ण दुःख भुगतने को पडते है। जो पूर्वभवमें अग्निस्नान से शरीर छेदसे संकलिष्ट परिणाम भरा हुआ हो वो जीव नरकमें उत्पन्न होते तो उस समयमें शाता का अनुभव होता है, अथवा कोई मित्र देव आकर शाता का अनुभव कराके जाते । कोई कल्याणक प्रसंगपरभी कुछ शाता होता है। बाकी सदा अशाताका अनुभव होता है। अच्छिनिमीलण मितं नत्थि सुहं, खुद की नरक की आयुष्यस्थिती तक नारकजीवो हमेशा के लिये दुःख अनुभव, क्षणभर भी सुख की प्राप्ती नहीं होती इस लिए हरएक आत्माओं ऐसी दुर्गतिमें न जाना पड़े इस लिए पापकी प्रवृत्तिओ न कर के सदाचारी-संयमी और पाप के बिना जीवन जीना चाहिए। रत्नप्रभा पृथ्वीका उपरके छेडे की समश्रेणी चारो बाजु फिरते गोलाकार में रहे हुए घनोदधि, धनवात और तनवात वलय की पहोलाई कितनी है ? घनोदधि पहोलाइ -६ योजन है। घनवातकी - ४|| योजनकी तनवातकी १|| योजनकी, उपरके भागकी १९ योजन दूर अलोक है। किल्ला जीतना व्यवस्था की जरूर नहीं उधर कुछ अच्छा नहीं के लुटने की भी नहीं मात्र दुःख ही होता है। नारको पराधीन है। ___ मालीक जैसा कुछ भी नहीं, कुछ वस्तु को बेचनेका भी नहीं, सब अशुभ है। सातवी नरक बाकी प्रायः नारको सतत उत्पन्न होते हैं। और आते है। कुछ बार ही अंतर (विरह) पडते हैं। सातवे नारकीमें सामान्यसे ज.१ समय, उ. से १२ मुर्हत। प्राणीवध और मांस खानेवाले कालसौरीकादि जैसे नरक में जाते छिपकली-बिल्ली-तंदुलीय मत्स्य जैसे अशुभ विचार रौद्र परिणामो से दुदर्यानमे नरकायुष्य बांधते है।
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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