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________________ संख्या...हाय ! ये सिल्क के परिधान जो आपकी शान दिखाते है अत्यंत हिंसक तरीके से बने हैं। जिंदगी का दोहरा मापदंड एक तरफ अत्यंत धार्मिक जीवन सुबह के समय और शाम को शान बढ़ाने वाले हिंसा जनीत परिधान। हाथी दात : आफ्रिका, केन्या आदि देशों में हाथियों की बड़े पैमाने पर हत्या हो रही है जहरीले तीरों से ताकि हाथी दांत लेकर आभूषणो का निर्माण किया जा सके। लेदर : जानवरो को मारकर चमड़ा उतारकर पर्स, चप्पल, जुते, बेल्ट आदि बनाये जाते है। यह चमड़ा भी अगर नवजात पशु का हो तो उससे निर्मित वस्तुएं बाजार में खूब महंगी बिकती है। (काफ लेदर) के नाम से क्योंकि ये वस्तुएं खूब मुलायम होती है। बड़ी संख्या (पचास हजार के करीब) में व्हेल मछली का शिकार हो रहा है। चर्बी और तेल के लिये। शेम्पू, क्रीम, साबुन आदि के लिये हजारों खरगोश पकड़कर गर्दन बाहर रखकर बाकि शरीर पेटी में डालकर बंद कर दिये जाते है। उसके पश्चात शेम्पु आदि उनकी आंख में डालकर प्रयोग किया जाता है और परिणाम रुप कई बेचारे अंधे हो जाते है। एलोपेथी दवाई का भी इस प्रकार परिक्षण किया जाता है इन मूक प्राणियों पर अंत में इन प्राणियों की चमड़ी उतार कर पर्स आदि बनाये जाते है। हजारो की संख्या में बंदरो का निर्यात होता है, उन्हे भी इसी प्रकार बांधकर विभिन्न प्रयोग करे जाते है और अंत में मृत्यु हो जाती है उनकी नाभि में से कस्तुरी निकाल कर खूब महेंगे दाम पर बेचा जाता है। अरेरे ! मानव के सौंदर्य की अभिलाषा ने भयंकर क्रूर आचरण कर लिया है। स्त्री रोग में दी जानेवाली, ऑस्ट्रेजन नाम का हारमोन जीवित गर्भवती घोड़ी में अत्यंत त्रास पूर्वक निकाला जाता है विटामीन ए और डी वाली दवाएँ। डायबिटीज के मरीज को दिया जानेवाला इंसुलिन भी जानवरों के लीवर में से बनाया जाता है । दम-अस्थमा के इलाज में उपयोग आनेवाली दवा... कत्ल करे जानवरों की ग्रंथियों में से बनाई जाती है। आजकल अब सिंथेटिक भी बनाई जा रही है। दवाइयाँ प्राणियों की कुर हिंसा के द्वारा बनायी जाती है। १८) हिंसा का फल - ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती कांपिल्यपुर के राजा ब्रह्मदत्त ने राज्याभिषेक कर अपने पुत्र ब्रह्मदत्त को राजा बनाया। ब्रह्मदत्त अपने बाहुबल से षखंड जीतकर चक्रवर्ती बने । एक दिन एक ब्राह्मण ने उनसे भोजन की मांग की। ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ने भोजन कराया चक्रवर्ती ने उसे पकड़वा लिया और पूरे परिवार के साथ उसे मारकर वंश समाप्त कर दिया । चक्रवर्ती ने मंत्री से कहा हर रोज ब्राह्मण को मारकर उसकी आंखे लाओ मै नींद में से उठकर दोनो हाथो से उनको मसलकर आनंद प्राप्त करुगा । चक्रवर्ती की आज्ञा पालन अपना फर्ज समझकर मंत्री उसी प्रकार किया और आँखो को थाली में रखकर चक्रवर्ती के सामने रखी । ब्रह्मदत्त ने आँखे खूब जोर से मसलकर कहा इसी प्रकार रोज लेकर आना। १९) अक्खाई महावीर भगवान को वंदना कर गौतम स्वामी एक दिन मृगागाम में मृगाराणी के घर गोचरी लेने गये। मृगापुत्र को देखकर उन्होंने आकर प्रभु से पुछा - है कृपालु ! इस जीव के ऐसे कौन से पाप कर्म है ? तब प्रभु ने मृगापुत्र के पूर्व भवका इस प्रकार वर्णन किया। वह महाशतद्वार नगर का स्वामी धनपति राजा का सामंत अक्खाई राठोड (राष्ट्रकुट वंश) नामक था वह ५00 गाँव का स्वामी था। वह महापापी, हिंसक, लंपट और व्यसनी था । कर वसुलने के लिये प्रजा को खूब हैरान करता था और खुद मौज मजे करता । किसी की आँखे फोड़नी, हाथ पैर काटने, नाक कान काटने आदि के कुर आचरण करना। अंत में कमजोर और रोगी हो गया । महाहिंसा या तीव्र पापो की सजा यही भोगनी पड़ती है। २५० वर्ष का आयुष्य पूर्ण कर राठोड मर गया । हे गौतम ! राठोड का जीव मरकर मृगाराणी की कुख से जन्म लेता है। जन्म के साथ ही भूमिगृह में दुर्गंध फैल जाती है, आँखे नहीं होने के कारण अंधा है। कान - नाक भी नहीं। गुंगा - बहरा है, नाक के स्थान पर एक छिद्र है उसी से श्वास आ जा रहा है, मुँह भी पूरा नहीं, हाथ पैर भी नहीं। मात्र माँस का पिंड जैसा शरीर है। भयंकर वेदना भोग रहा हे प्रभु ! मुझे नरक नहीं जाना है !!! (28)
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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