SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्द प्रमाण शब्द के सम्बन्ध में किये गये प्रश्न को दो भागों में बाँट कर इस पर विचार करना आवश्यक प्रतीत होता है। (क) क्या शब्द एक प्रमाण है? एवं (ख) क्या शब्द एक स्वतन्त्र प्रमाण है? इस प्रश्न पर भारतीय विचारकों में कोई खास मतभेद नहीं है। वैशेषिक, बौद्ध एवं चार्वाक शब्द को प्रमाण की कोटि में नहीं रखते हैं। बौद्ध एवं चार्वाक वेद को अपौरूषेय नहीं मानते हैं। इनकी दृष्टि वैदिक वाक्य या शब्द भी संदेह के घेरे में आ सकते हैं। चार्वाक दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष ही एकमात्र प्रमाण है एवं शब्द को प्रमाण नहीं माना जा सकता है। सभी भारतीय दार्शनिकों ने चार्वाक के इस मत का खण्डन किया है। बौद्धों ने भी शब्द को प्रमाण नहीं माना है। शब्द प्रमाण के विरूद्ध इनके दो आक्षेप हैं (1) शब्द भौतिक विषय है और ज्ञान अभौतिक विषय है। समान से समान की उत्पत्ति होती है। इसलिए भौतिक शब्दों से अभौतिक ज्ञान की उत्पत्ति असंभव है। इसलिए बौद्ध शब्द को प्रमाण नहीं मानते हैं। उनका प्रमाण नहीं मानना शब्द के गलत अर्थ लेने के कारण है। वास्तव में शब्द से भौतिक रंग या भौतिक ध्वनि का बोध नहीं होता। ध्वनि अथवा अक्षर तो शब्द के संकेत मात्र हैं। शब्द प्रमाण का सम्बन्ध सार्थक शब्दों के बोध से है। अतः शब्दबोध से ज्ञान की उत्पत्ति होने में कोई विरोध नहीं है। (2) बौद्धों का दूसरा आक्षेप है-यदि विश्व के सभी प्रकार के ज्ञान प्रत्यक्ष और अनुमान के द्वारा ही उपलब्ध हो जाते तो फिर शब्द को प्रमाण मानने की क्या आवश्यकता पड़ती? वैशेषिकों ने भी शब्द को अनुमान के अन्तर्गत ही माना है। बौद्ध एवं वैशेषिक सम्मति के अनुसार प्रश्न उपस्थित हुआ है-'ननु एतानि' इत्यादि के द्वारा प्रश्न का आशय जैसा कि पहले भी संकेत किया जा चुका है कि शाब्दबोध को दूसरे शब्द में अन्वयबोध भी कहा जाता है। अन्वय है-संबंध. तदनुसार पदार्थों के बीच पारस्परिक रूप में होने वाले संबंध का बोध ही है-शाब्दबोध। ऐसी परिस्थिति में उक्त पदार्थ संबंध का बोध यदि मान्य अनुमान से ही संपादित हो सके तो शब्द को एक स्वतंत्र प्रमाण क्यों माना जाय? स्मारित-पदार्थ-संसर्गवन्ति इसका विवक्षित अर्थ है-"स्मारित पदार्थ संसर्ग-ज्ञान-पूर्वकाणि" | तात्पर्य यह है कि-'घटमानय' इस शब्द को सुनकर श्रोता इस प्रकार अनुमान करता है कि वक्ता इस वाक्य का प्रयोग वाक्यान्तर्गत पदार्थों के बीच होने वाले संबंधों को समझ कर किया है।" यदि किसी विषय का ज्ञान प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द आदि के द्वारा प्राप्त हो तो इससे यह नहीं कहा जा सकता है कि इनमें कोई भी प्रमाण अनावश्यक है। इसलिए शब्द को व्यर्थ अथवा निरर्थक नहीं कहा जा सकता है। अतः प्रमाणों की विविधता किसी भी प्रमाण को निरर्थक या अनावश्यक सिद्ध नहीं दूसरे शब्द में भरिक रूप में होने वाला यदि मान्य अनुमान र था ऐसी परिस्थिति शब्द को एक अर्थ है-रमा को सुनकर 52
SR No.009501
Book TitleGyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy