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________________ (ख) क्योंकि यह सबसे ऊँचा पहाड़ है हेतु। (ग) एवं जो हिमालय नहीं है, वह सबसे ऊँचा नहीं है, जैसे आल्प्स, भारत में हिमालय आदि - उदाहरण । (घ) यह पहाड़ सबसे ऊँचा है- उपनय । (ङ) यह हिमालय पहाड़ है - निगमन ।। यह अनुमान मिल की व्यतिरेक विधि से मिलता-जुलता है। (3) अन्वय-व्यतिरेकी- यह वह अनुमान है, जिसमें साधन एवं साध्य का सम्बन्ध अन्वय और व्यतिरेक दोनों के ही द्वारा स्थापित होता है। इस अनुमान में व्याप्ति सम्बन्ध निम्नलिखित ढंग से स्थापित होता है-साधन के उपस्थित रहने पर साध्य भी उपस्थित रहता है । साध्य के अनुपस्थित रहने पर साधन भी अनुपस्थित रहता है। इस प्रकार व्याप्ति का ज्ञान अन्वय एवं व्यतिरेक की सम्मिलित प्रणाली पर निर्भर करता है। भावात्मक उदाहरण-सभी धुआंयुक्त स्थान अग्नियुक्त हैं। पहाड़ धुआँ युक्त है। पहाड़ अग्नि युक्त है। निर्षधात्मक उदाहरण- सभी आग रहित स्थान धूम रहित हैं। पर्वत धूमयुक्त है । पर्वत आग युक्त है। यह अनुमान मिल की संयुक्त विधि (The Joint method of agreement and difference) से मिलता-जुलता है। अतः यह कहना उचित ही है कि Student of Indian Logic will do well to remember that vitsyiyana is the earliest known writer who draw pointed attention to the reason why Gautam's Nyiya came to be regarded as the science of epistemology_and Logic (pramita° ístra, anviknik / or ny żya ° istra). " 49 व्याप्ति सम्बन्ध पर भारतीय दार्शनिकों में विशेषकर चार्वाक और पाश्चात्य दार्शनिकों में डेविड ह्यूम ने आपत्ति प्रकट की है। इनका कहना है कि अगर सिर्फ अतीत एवं वर्तमान अनुभव को स्वीकार किया जाए तो हम कह सकते हैं कि धुएं अथवा आग की व्याप्ति में कोई व्यतिक्रम नहीं पाया गया है, किन्तु इसका क्या प्रमाण है कि यह सम्बन्ध ग्रह, नक्षत्रों जैसे सुदूर स्थानों के लिए और भविष्य के लिए भी लागू होगा? इस संशय को दूर करने के लिए नैयायिकों ने बतलाया है कि “सभी धूमवान् पदार्थ बहिनमान है।" यह व्याप्ति तर्क द्वारा इस प्रकार प्रमाणित हो सकता है। अगर यह वाक्य सत्य नहीं है तो इसका विरोधी वाक्य "कुछ धूमवान् पदार्थ बहिनमान् नहीं हैं" अवश्य सत्य होगा। तो फिर व्याप्ति सम्बन्ध का खण्डन कैसे होगा? यह व्याप्य और व्यापक का सम्बन्ध है । यह दो प्रकार का होता है- समव्याप्ति एवं असमव्याप्ति । जब समान विस्तार वाले दो पद में व्याप्ति का सम्बन्ध रहता है तो उसे समव्याप्ति कहा जाता है। इसके पदों की व्यापकता बराबर होने के कारण एक-दूसरे का और दूसरे से पहले का 39
SR No.009501
Book TitleGyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size1 MB
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