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________________ (2) क्योंकि वह एक मनुष्य है-हेतु। (3) सभी मनुष्य मरणशील हैं, जैसे-राम, श्याम, मोहन, सोहन, रहीम आदि उदाहरण। (4) राम भी एक मनुष्य है-उपनय। (5) राम मरणशील है-निगमन। गौतम का कहना है कि “साध्य निर्देशः प्रतिज्ञा' अर्थात् साध्य का निर्देश करना ही प्रतिज्ञा है। पक्ष में साध्य को सिद्ध करने वाला साधन ही हेतु कहलाता है। यानी जिस युक्ति के द्वारा प्रतिज्ञा को सिद्ध किया जाता है, उसे ही हेतु कहा जाता व्याप्ति स्थापित करने वाला दृष्टान्त ही उदाहरण है और दृष्टान्त सहित हेतु एवं साध्य का व्यापक सम्बन्ध दिखलाकर उसे पक्ष में प्रयुक्त करना ही उपनय है। जब प्रतिज्ञा सिद्ध हो जाती है तो उसे ही निगमन कहा जाता है। कुछ आलोचकों का कहना है कि प्रतिज्ञा और निगमन तथा हेतु और उपनय में कोई अन्तर नहीं है। नैयायिक इस मत का खण्डन करते हुए कहते हैं कि प्रतिज्ञा और हेतु एक नहीं कहे जा सकते हैं। सिद्ध की जाने वाली वस्तु का कथनमात्र ही प्रतिज्ञा है और उस वस्तु के वास्तव में सिद्ध हो जाने पर निगमन करते हैं। इसी तरह हेतु और उपनय में स्पष्ट अन्तर है। प्रतिज्ञा को सिद्ध करने वाला साधन ही हेतु है, किन्तु दृष्टान्त द्वारा हेतु और साध्य के बीच सामान्य सम्बन्ध दिखलाते हुए उसे पक्ष पर विशेष रूप से लागू करना ही उपनय कहलाता है। अतः जहाँ पाश्चात्य न्याय मात्र निगमनात्मक होता है, वहाँ पंचावयव न्याय को निगमनात्मक-आगमनात्मक कहा जाता है। इसमें वास्तविक सफलता की प्राप्ति का प्रयास किया जाता है जबकि पाश्चात्य न्याय में आकारिक सत्यता की प्रधानता रहती है और कभी-कभी वही लक्ष्य रहता है। राधाकृष्णन् के शब्दों में-"हेतु के पक्ष में विद्यमान होने मात्र से ही जिसे पक्षधर्मता कहते हैं, अनुमान तब तक प्रामाणिक नहीं हो सकता, जब तक कि एक व्यापक सम्बन्ध हेतु और साध्य के बीच में स्थापित न हो। उदाहरण-'जहां-जहां धुआं है, वहां-वहां आग रहती है। जैसे रसोईघर में, हमें अनुमान के आधार पर, साध्यपद की ओर ले जाता है। गौतम के अनुसार-उदाहरण से तात्पर्य एक ऐसे समान दृष्टान्त से है, जहां साध्य का आवश्क गुण विद्यमान हो। वात्स्यायन का भी यही मत प्रतीत होता है।" प्राचीन न्याय या गौतम के अनुसार-अनुमान के तीन प्रकार हैं-(1) पूर्ववत् (2) शेषवत् और (3) सामान्यतोदृष्टानुमान। यह व्याप्ति के प्रकार-भेद के अनुसार हुआ है। (क) पूर्ववत् अनुमान-इस अनुमान में पूर्ववर्ती के आधार पर अनुवर्ती का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। यानी ज्ञात कारण से अज्ञात कार्य का अनुमान करना 36
SR No.009501
Book TitleGyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size1 MB
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