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________________ पड़ेगा और भारत की दिशा और दशा बदलेगी और तभी भारत का समुचित विकास संभव हो सकेगा। बिहार भारत के विकास में मानव जाति के आध्यात्मिक का पोषण करने के महान कार्य में राजनीति और धर्म मित्रवत सहभागी हैं। जब हम एक-दूसरे को समृद्ध करने लगेंगे, शक्तिशाली बनाने लगेंगे तभी उस आत्मा का आवरण होगा, जिसकी तलाश आज इस संसार को है। शायद इसीलिए एच. एम. भट्टाचार्य ने कहा है कि 145 "In India Philosophy arose from the deeper needs of spiritual life"." स्वामी विवेकानन्द, डॉ. राधाकृष्णन् आदि ने भी सर्वहित एवं सर्व धर्म समभाव की शिक्षा दी है। बिहारियों को यह पहले से प्राप्त है। इन्हें मात्र स्मरण करना है और सम्पूर्ण भारत के विरासत से सीख लेने क प्रेरणा देना है। आज भी मिथिलांचल के वासी जगतगुरु स्वामी निश्च्छिलानन्द जगत् को प्रेरणा दे रहे हैं। प्राचीन काल में भगवान् महावीर की उक्ति - णाणस्स सारमायारो" आज भी स्मरणीय है। जिस तरह सुकरात की उक्ति "ज्ञान सद्गुण है और सद्गुण ज्ञान है" विश्व के चिन्तनशील प्राणियों के लिए आज भी प्रेरणादायक है, उसी तरह रामधारीसिंह दिनकर का यह कहना कि झर गये पंख, हेमंत झरे, पशुता का झरना बाकी है। ऊपर-ऊपर तन संवर गये, मन का संवरना बाकी है।। मात्र बिहारियों के लिए ही नहीं या मात्र भारतीयों के लिए ही सीमित नहीं है बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए चुनौती भी है और मानवीय ज्ञान को अधोमुखी नहीं बल्कि ऊर्ध्वगामी बनाना अथवा आरोहित जीवन की ओर इशारा करना भी है इस बात की पुष्टि गालिब के निम्नलिखित वक्तव्यों से भी होती है इन्सानियत की रोशनी गुम हो गई कहां ? साये हैं आदमी के मगर आदमी कहां?? वस्तुतः उपर्युक्त बातें हमें मूल्यवादी ज्ञान एवं शिक्षा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए उत्प्रेरक तत्त्व का काम कर रहे हैं। सामान्यतः हम व्यक्तित्व का सर्वागीण विकास सुखी जीवन, समाज, संस्कृति, राष्ट्र एवं विश्व में व्यवस्था, सामंजस्य, शान्ति एवं प्रगति की चाह रखते हैं और ये सब मूल्यों के आचरण और शिक्षा से ही संभव है और और इस दिशा में दिनकर जी ने बिहार की गौरवशाली इतिहास को जिन्दा करने का काम किया है। इतना ही नहीं इन्होंने वर्तमान समय में बुद्ध और महावीर को याद दिलाया है और विश्व को पुनः प्रेरणा लेने के लिए न्यौता भी दिया है। 166
SR No.009501
Book TitleGyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size1 MB
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