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________________ हा (ख) यह प्रणाली निगमनात्मक है। पूर्व अनुभव से इसमें फल का अनुमान किया जाता है। यह ज्ञात रहने पर कि ख का कारण क है, घ का ग और झ का ज निगमन रीति से निष्कर्ष निकलता है कि 'क' 'घ' का कारण होगा। अतः इसका उपयोग आगमन में करना उचित नहीं है। (ग) इस विधि का प्रयोग सर्वत्र संभव नहीं है। सरल कार्यों में इस विधि को लागू नहीं किया जा सकता। (घ) यह विधि स्वतंत्र नहीं है। यानी इस विधि को स्वतंत्र विधि नहीं कहा जा सकता है। इसकी उपयोगिता तब तक है, जब तक जांच की जाने वाली घटना के कुछ अंशों के कारण का ज्ञान हमें पहले से ही हो। घटना से पूर्णरूपेण अनभिज्ञ रहने पर यह विधि सहायता नहीं दे सकती है। (ङ) इस विधि का सम्बन्ध परिणाम-विषयक खोजों से रहता है. न कि गुण सम्बन्धी खोजों से। (च) कुछ तार्किकों ने इसे व्यतिरेक विधि का ही एक विशेष रूप माना है। इसलिए व्यतिरेक विधि के दोषों से यह विधि भी मुक्त नहीं है। वस्तुतः इस विधि में निराकरण का कार्य अधिकतर विचार के ही क्षेत्र में होता है, परीक्षा के लिए नहीं। अतः यह विधि परीक्षा के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध नहीं हो पाती है। 142
SR No.009501
Book TitleGyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size1 MB
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