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________________ མ་ཝན་སུཔན་ཧདཔ; ་་་ ངས༔ ན པནས་པས་དབ, དབདཝན་དག་• སམནབ དམངསྨདས་ པ ་ उत्तम ब्रह्मचर्य । [७९ ही शिक्षाके आपहीसे आ जाती है। यदि अन्य इंद्रियोंकी विषयसामग्री कुछ कालतक न भी मिले, तब भी यह जीव इतना विहल नहीं होता जितना कि कामपीड़ित हो जाता है । वह तो खाना, पीना, सोना सब भूल जाता है। लज्जा भी लज्जित होकर भाग जाती है। वह कभी रोता, कभी नाचता, कभी गाता, कभी हंसता, कभी दीन होजाता, कभी क्रोध करता, अखाद्य खाता और नीच जनोंकी सेवा करता है। कहांतक कहा जाय ? संसारमें जो भी न करने योग्य कार्य हैं सो भी करता है। वह कुलकी मर्यादा, धर्म आदिको जलांजुलि दे देता है, सदा चिंतावान रहता है, शरीरसे कृश होजाता है, अनेक प्रकार राजदण्ड, पंचदण्ड भी भोगता है, तो भी विषयसे पराङ्मुख नहीं होता है। तात्पर्य-काम इन्द्रियका विषय अन्य इन्द्रियों के विपयोंसे अत्यन्त प्रबल है और अन्य इन्द्रियोंके विषय भी इसीमें गर्भित हो जाते हैं। इसीलिये इससे विरक्त होनेको ही ब्रह्मचर्य कहा है। इसलिये सच्चे सुखाभिलापी जीवोंको सदा उत्तम ब्रह्मचर्य व्रत धारण करना चाहिये। यद्यपि यह काम अत्यन्त प्रबल है कि जिसने तीन लोककें जीवोंको वश कर रक्खा है, तो भी यह न समझना चाहिये कि यह दुर्जेय या अजेय ही है । नहीं नहीं, यथार्थमें कायर जीवोंके लिये , ही ऐसा है, किन्तु पुरुषार्थी वीरोंपर तो इसका कुछ भी वश नहीं चलता है। देखो, श्री नेमिनाथ भगवानने दीन जीवोंको दुःख देखकर ही सांसारिक विषयोंको छोड़ दिया था। उन्होंने देवांगना
SR No.009498
Book TitleDash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size6 MB
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