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________________ w i . . .. ... .. उत्तम संयम [४९ कैसे कहा जाय कि विषयों में सुख है ? यदि विषयोंमें सुख होता, तो फिर उनके सेवन करनेका फर दुःखदायी क्यों होता ? देखो, कहा है "अली. मातंग, मृग, सल, मीन, विषय इक इकमें मरते हैं। नतीजा क्या न पावें वे, विषय पांचों जो करते हैं ? ॥" अर्थात-भौंरा नासिका वश. हाथी मैथुन वश, मृग कानवश, पतंग आंख वंश, और मछली जिहा वश, ये पांचों एक एक इन्द्रियके आधीन होकर प्राण खो बैठते हैं तब जो पांचों इन्द्रियोंके वश रहते हैं वे क्यों नहीं दुःख भागेंगे ? अवश्य ही भोगेंगे। ___इसलिये ये विपय सच्चे सुखाभिलापी पुरुषोंको विषधर सर्पके समान छोड़ने योग्य हैं । संसारमें जो मोही जीव हैं वे ही इनका दुष्परिणाम देखते हुए भी नहीं छोड़ते हैं, सो वे पुरुष आंख रहते हुए भी अन्धेके समान संसार-कूपमें गिरते हैं और अपने साथ अनु. यायियोंको भी ले डूबते हैं । कहा है "आप डुबन्ते पांडे, ले डूबें यजमान।" यथार्थमें जो पुरुष अन्य जीवोंको विषय कपायोंसे छुड़ाकर सन्मार्गमें नहीं लगाते, न आप सन्मार्गमें लगते हैं; किन्तु उलटा उन्हें विषयोंमें फंसाने के लिये उत्तेजना वा सिखावन देते हैं सो ऐसे पुरुष प्रगटरूपसे भले ही हितू जैसे प्रतीत होते हैं, परन्तु वास्तवमें तो उनके परम शत्रु हैं, कारण कि जो बात विना सिखाये ही जीवोंमें आजाती हैं तब उनके सिखानेसे तो क्या होगा, उसका कहना ही क्या है ? जैसा कि कहा है- . . . . . .,
SR No.009498
Book TitleDash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size6 MB
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