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________________ २६] श्रीदशलक्षण धर्म। मायाचारी कभी सत्य तो बोलता ही नहीं है और यदि क्वचित् कदाचित् वह कुछ सत्य भी कहे, तो भी उसका कहना असत्य ही समझना चाहिये और कदापि उसका विश्वास नहीं करना चाहिये और प्रायः कोई करते भी नहीं हैं। यद्यपि वह अपने दोषोंको पूर्णरूपसे ढंकता है तो भी उसका कपटभेष अंतमें प्रकट हो ही जाता है और कपटभेष प्रगट होते ही फिर कोई उसका विश्वास नहीं करते हैं। यद्यपि कुछ समय तक लोग विना जाने उसके पञ्जमें भले ही फंसे रहें और वह भी अपने आपको कृतकृत्य समझले, पर जैसे कि मिट्टीसे अच्छादित ह्वीसे पानीके भीतर मिट्टी गलकर छूटते ही ऊपर आ जाती है, वैसे ही कपट भेष भी बहुत समय तक नहीं छिप सकता। ____ मायाचारीका विश्वास लोकमेंसे उठ जानेपर उसका समस्त व्यवहार बंद होजाता है, जिससे उसे अत्यन्त दुःखी होना पड़ता है। . . मायाचारी मनुष्यको कभी भी शांति नहीं मिलती, वह सदा ही उधेड़बुनमें लगा रहता है। किसीका बुरा करना, किसीको लड़ाना, किसीकी चुगली खाना, किसीका अपमान व पराजय कराना इत्यादि। तात्पर्य-उसे कभी सुख-नींद नहीं आती। वह निरंतर चिन्ताग्रस्त रहता है और चिन्तावानको सुख कहाँ ? मायाचारी आप तो दुःखी रहता ही है किन्तु अन्यको दुःखी करनेमें भी हर्ष मानता है । वास्तवमें ऐसे लोग शत्रुसे भी भयंकर होते हैं क्योंकि शत्रु तो प्रगट रूपसे धावा करके मारता है, इसलिये उससे तो हम सदा शंकित अर्थात् सावधान रहनेके कारण किसी
SR No.009498
Book TitleDash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size6 MB
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