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________________ १२] श्रीदशलक्षण धर्म । ཡས་ནས༔ ནསཨཱན པདས་ནས། ད་ནང་ ནཀ་:འང་ བསད་ ་་་ ་་་ པས༴ ས་ ན་ས་.དཔ ན ''དྨ་སཱ་པཱཔས कुछ मार्दव गुणके धारी नहीं कहे जाते । क्योंकि उनकी यह विनय व नम्रता स्वाभाविक नहीं है किन्तु दबाव व लाचारीकी है। वे अवसर पाकर पुनः मस्तके उठाकर चलने लगते हैं । परन्तु जो उत्तम ज्ञानवान् , तपस्वी, ऐश्वर्यवान, समर्थ, बलवान्, रूपवान, कुलवान, उत्तम जातिवान तथा धनवान होते हुवे भी इनका मान नहीं करते और यथायोग्य विनय व शिष्टाचाररूप प्रवर्तन करते . हैं अर्थात् बड़ों (जो ज्ञान चारित्र दीक्षा पद व वयमें वृद्ध हैं) की विनय भक्ति और छोटोंमें दया व मृदुभाव रखते हैं और अपने आत्माको मानकषायरूपी मलसे मलिन नहीं होने देते हैं वे ही उत्तम मार्दव धर्मचारी कहे जाते हैं । क्योंकि कहा है मृदोर्भावः इति मार्दवः अर्थात्-मृदु (नम्र) भावोंका होना सो ही मार्दव धर्म हैं। उत्तम अर्थात् सच्चा कि जिसमें दिखावट या बनावट न हो, ऐसा उत्तम मार्दव धर्म आत्माहीका निजस्वभाव है। यह गुण आत्मासे, मान कषायके क्षय, उपशम वा क्षयोपशम होनेसे प्रगट होता है-अर्थात् जबतक किसी जीवको मानकषायका उदय रहता है, तबतक वह प्राणी अपने आपको सर्वोच्च मानता और दूसरेको तुच्छ गिनता हुआ, सबको अपने आधीन बनानेकी चेष्टा करता रहता है और जो कोई उसे नमस्कार व प्रणाम आदि शिष्ट व्यवहार नहीं । करता है वा इससे मध्यस्थ अथवा विपक्षी होकर रहता है, तो वह उसे देख नहीं सकता तथा सदैव उसे नीचा दिखानेका विचार और उपाय किया करता है। यहांतक कि वह अपने बलाबलको न विचारकर अपनेसे सबलका भी साम्हना कर बैठता है और बंदी हो
SR No.009498
Book TitleDash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size6 MB
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