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________________ १३४] श्रीदशलक्षण धर्म । ॐ ह्रीं अकलंक गुरु ब्रह्मचर्योगाय जलादिकं ॥ ८ ॥ सुपात्रकेशरी सरि वीतरागोक्तभावगं । स्वष्टसहस्त्री कर्तारं पूजयामि शिवंकरं ॥९॥ ॐ हीं पात्रकेशरीब्रह्मचर्योगाय जलादिकं ॥ ९ ॥ गोमट्टसारसिद्धान्तकर्तारं भव्यदेशकं । नेमिचन्द्रं सुबुद्धीश पूजयामि शिवकरं ॥ १० ॥ ॐ ही नेमिचंद्रब्रह्मचर्योगाय जलादिकं ॥ १० ॥ भुवनमल यजाक्षत सरजमोदकदीपधूपमोचफलैः । दशकमलेभ्योऽधू दयाम्यहं शुद्धभावेन ॥ ११ ॥ ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादि दशकमलेभ्यो महाघ ॥ ११ ॥ जयमाला। घत्ता। महाभरण मुनिजनहृदिकीधा, दर्शन बोध चरित्र धरी । ब्रह्मचर्यव्रतपालन, सहस्रअष्टादश, श्रीजिनभाषित, भेदकरी ॥१॥ मुनि वनितारूप विकार रहित । . मुनि वनिता संगति नहिं करंत ॥ मुनि वनिता गोष्टि न मनधरति । मुनि पंथि वनिता संग न चरति ॥ २॥ मुनि देवनारि निश्चय त्यजति । ... मुनिय सुभामा संग न भजति ॥ जय .
SR No.009498
Book TitleDash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size6 MB
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