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________________ व्रतोद्यापन। ६.१०३ भाण सुभाणकिय उवयमुत्तम पयापाल महीपाल सुसत्तम । कियउ अणंतपाल पुरुषोत्तम धणवइ धणपालेण मणोत्तम ॥ १० ॥ भविसकुमर सिरिकुमर सुसारं वजकुमर श्रीपाल सुधारं। कंठ सुकंठ णरिद भारं घोस सुघोस गमा वयपारं ॥११॥ एवं गरणारी वय सुंदर पविकिय गय मोक्खसुमंदिर। कहिय जिणिद दिव्यधुणि मंदिर भविय सणाण लहइ सोमंदिर ॥ १२ ॥ जे णरणारी भणइ जयमाला लहु ते पावइ सुह परिमाला। मुक्ति रमणी गल कंदल माला णासइ भवमय दुक्खह माला || १३ ॥ अभय चंद मुणि जय मणोहारा वंदित अभयनन्दि जयकारा । पत्ता। बंदित सुरसागर, मुणिगण सागर, सागरसुख तरंगभर । सिरि सुमइ सुसागर, जिणगुणसागर, सागर केवल परमपद (२) ' ॐ हीं दशलाक्षणिक धर्मेभ्यो महाघ ।
SR No.009498
Book TitleDash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size6 MB
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