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________________ (१३) आचारांग में सामाजिक उत्सव - संगीता मुनोत मानव मूलरूप से ही उत्सवप्रिय है । अपने हर एक कार्य को अपनों के साथ मिलकर मनाना उसे अच्छा लगता है । उत्सवप्रियता एवं समाजप्रियता एक सिक्के के दो पहलू हैं । आचारांग में कुछ इस प्रकार के वर्णन पाये जाते हैं जिससे हमें मालूम होता है कि उस प्राचीन काल में उत्सव मनाने का कौनसा तरीका था। आचारांग के ‘पिण्डैषणा' अध्ययन में वर्णित उत्सव उस समय की सामाजिक परिस्थिति दर्शाते हैं । अठाई, पन्द्रह, मासखमण आदि तप के तथा उसके पारणे के उपलक्ष्य में लोग उत्सव मनाते थे । ऋतु-संबंधी त्यौहारों की भरमार थी । शरदोत्सव, वसंतोत्सव आदि समारोह ऋतु-आरंभ एवं ऋतुसमाप्ति पर होते थे । पितरों के श्राद्ध में भोज का आयोजन होता था । ___ कौमुदीमहोत्सव, मदनमहोत्सव एवं इन्द्रमहोत्सव बडे पैमाने पर मनाया जाता था । इन्द्र, रुद्र, बलदेव, भूत, यक्ष, नाग आदि की पूजा-उपासना की जाती थी । चैत्य, स्तूप आदि निर्माण के समय भी काफी बडे समारंभ होते थे । प्राकृतिक चीजों की पूजा की जाती थी - जैसे - वृक्ष, पर्वत, गुफा, तलाव, सरोवर, नदी, सागर आदि । मनुष्यों के विविध संस्कार जैसे जन्म (वर्धापनक), नामकरण, विवाह आदि के उपलक्ष्य में उत्सव होते थे । मृत्यु के उपरान्त भी महाभोज का आयोजन होता था । इन दोनों का उल्लेख आचारांग में पूर्व-संखडी' और 'पश्चातसंखडी' के रूप में निदर्शित है । संखडी में मांसाहार, मद्यपान का भी प्रचलन था। ४४
SR No.009489
Book TitleArddhmagadhi Aagama che Vividh Aayam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherFirodaya Prakashan
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other
File Size1 MB
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