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________________ आचारांग मनुष्यों की संवेदनशीलता को गहरी करना चाहता है, जिससे मनुष्य एक ऐसे समाज का निर्माण कर सके जिसमें शोषण, अराजकता, नियमहीनता, अशांति और आपसी सम्बन्धो में तनाव विद्यमान न रहे । मनुष्य अपने दु:खों को तो अनुभव कर ही लेता है, पर दूसरों के दु:खों के प्रति वह प्रायः संवेदनशील नहीं हो पाता । यही हिंसा का मूल है । जब दूसरों के दुःख हमें अपने जैसे लगने लगे तो ही अहिंसा का प्रारंभ हो सकता है । ___'जीओ और जीने दो' अर्थात् “सह-अस्तित्व' अहिंसावाद का मूलमंत्र है, जिस पर समग्र जैन आचार की धुरी घूमती है । भगवान् महावीर ने कहा है कि चरित्र की शुद्धता से आत्म-कल्याण एवं पर-कल्याण दोनों होते हैं । महावीर की दृष्टि में किसी प्राणी की मात्र हत्या ही हिंसा नहीं है, यह तो उसका भौतिक और स्थूल रूप है । अहिंसा को केवल छोटे जीवों की हत्या न होने तक ही सीमित मान लेना उसकी एकांगी व्याख्या है । भगवान् महावीर ने शोषण, उत्पीडन, तिरस्कार को भी हिंसा माना है । वे तन की हिंसा के साथ साथ मन की हिंसा को अधिक भयंकर मानते हैं । महावीर की दृष्टि में प्रमत्तयोग अर्थात् कषायात्मक वृत्ति तथा कलुषित भावना ही हिंसा है ।। भगवान् महावीर ने सब तरह की हिंसाओं के उन्माद से बचे रहने की मानव को अहिंसा की विशुद्ध धर्मदृष्टि दी । उनकी वाणी की आधारशिला 'अहिंसा' के माध्यम से ही मानवता, विश्व-प्रेम, विश्व-बन्धुत्व और वसुधैव कुटुम्बकम् का सर्वव्यापी प्रचार-प्रसार किया जा सकता है । ३४
SR No.009489
Book TitleArddhmagadhi Aagama che Vividh Aayam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherFirodaya Prakashan
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other
File Size1 MB
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