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________________ ब) चतुर्धातुवादी श्रीमद्जी अ) आत्मा को क्षणिक या आत्मा ही नहीं माना तो सुख-दुःख रूप फल का वेदन किसे होगा ? जाना और नष्ट हो गया तो कहेगा कौन ? क्षणिकता का सिद्धान्त प्रकट करनेवाला कभी क्षणिक नहीं हो सकता । जागृतस्वप्न-निद्रा वैसे ही बाल - युवा - वृद्ध इसमें जो अवस्था का नाश हुआ उसको जाननेवाला व स्मृति में रखनेवाला आत्मा है । ब) क्षणिक है तो मोक्ष किसका ? क) सिर्फ अवस्था का नाश होता है । यदि सत् का सर्वथा नाश हो तो संसार व्यवस्था न रहे । (६) कर्मोपचय निषेधवाद (क्रियावाद) बौद्धों का मत : मानसिक संकल्प को ही हिंसा का कारण बताया । राग मांसभक्षण करे तो कर्मबन्ध नहीं । श्रीमद्जी -द्वेष रहित विष-अमृत स्वयं नहीं जानते कि हमें इस जीव को फल देना है, तो भी उन्हें ग्रहण करनेवाला जीव विष- अमृत के परिणाम की तरह फल पाता है। (७) अकारकवाद (अक्रियावाद) सांख्य मत : आत्मा अमूर्त, अकर्ता, नित्य तथा निष्क्रिय स्वरूप है । श्रीमदजी अ) कर्तृत्व-भोक्तृत्व नहीं तो परलोक नहीं । ब) अपरिणामी कूटस्थ नित्य आत्मा हो तो बन्ध - मोक्ष की व्यवस्था नहीं । ११३
SR No.009489
Book TitleArddhmagadhi Aagama che Vividh Aayam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherFirodaya Prakashan
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other
File Size1 MB
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