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________________ स्थानांगसूत्र, तत्त्वार्थसूत्र और सूत्रकृतांग के इस अध्ययन में सारांशरूपेण नरकगमन के मुख्य चार कारण या हेतु बतलाए हैं । नारकी जीव तीन प्रकार से यातनाएँ भोगता है । इसका विस्तृत वर्णन जैन मूलग्रन्थों में विस्तार से पाया जाता सूत्रकृतांग में नरक का वर्णन क्रमशः प्राप्त नहीं होता परन्तु बाकी जगह सात नरक की भूमियाँ, उनके स्थान, नाम, रचना, लम्बाई-चौडाई, गति-स्थिति आदि का इतना विस्तृत वर्णन मिलता है कि सन्देह के लिए कोई स्थान ही नहीं है । बौद्ध और ब्राह्मण परम्पराएँ भी इसका समर्थन करती है । यह बात बार-बार पूछी जाती है कि नरक के शारीरिक दुःखों का वर्णन ही बार-बार क्यों किया जाता है ? इसका उत्तर यह है कि आत्मा सुख-दुःख से परे है, अजर-अमर-अविनाशी है । आत्मा को कोई मार-काट या जला नहीं सकता । तो फिर जो भी दुःख है वह शारीरिक ही होगा । दूसरी एक बात कही जाती है कि इसी पृथ्वीतल पर हम जो भी नरकसदृश रोग, दुःख, पीडा, प्रदूषण, आतंकवाद, युद्ध आदि भोग रहे हैं - यही नरक है । इसके प्रतिवाद में कहती हूँ कि यह तो इस अवसर्पिणीकाल के पंचम आरे का प्रभाव है । इस काल में पाये जानेवाले सुख-दुःख, सुखाभास और दुःखाभास है । इसलिए वे नरक के दुःख नहीं हो सकते । मनुष्य अपने सभी कृत पापकर्मों को यहाँ नहीं भोग पाता है । इसके लिए हमारे पास श्रेणिक राजा, श्रीकृष्ण आदि कई उदाहरण है । इसलिए मेरा मानना है कि भगवान की वाणी त्रिकाल सत्य है । नरक एक संकल्पना न होकर सत्य ही सत्य है, वास्तविकता है । १०६
SR No.009489
Book TitleArddhmagadhi Aagama che Vividh Aayam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherFirodaya Prakashan
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other
File Size1 MB
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