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________________ (११) जिन्होंने अधिक जलादि की हिंसा के कारण रूप ऐसे होली, दशहरा एवं संक्रान्ति आदि और जिसमें कंदमूलादि का भक्षण अथवा रात्रिभक्षण हो ऐसे एकादशी व्रत आदि मिथ्यात्व के पर्वों की स्थापना की उनका नाम भी लेना पापबंध का कारण है क्योंकि उनके प्रसंग से अनेक धर्मात्माओं की भी पापबुद्धि हो जाती है । । २६-२७ ।। (१२) तीव्र मिथ्यात्वयुक्त जीवों को धर्म का निमित्त मिलने पर भी धर्मबुद्धि नहीं होती ।। २८ ।। (१३) दान देने वाले तो अपने मान के पोषण के लिए देते हैं और लेने वाले लोभी होकर लेते हैं सो मिथ्यात्व एवं कषाय के पुष्ट होने से दोनों ही संसार में डूबते हैं । । ३१ ।। (१४) वर्तमान में लोग मिथ्यात्व के प्रवाह में आसक्त हैं और परमार्थ को जानने वाले बहुत थोड़े हैं । । ३२ ।। (१५) मिथ्यादृष्टियों के मत यथार्थ जिनधर्मियों के आगे नहीं चल पाते इसलिए उन मिथ्यादृष्टियों को ये अनिष्ट भासते ही हैं । । ३४ ।। (१६) कुगुरु के प्रसंग से मिथ्यात्वादि पुष्ट होने से जीव निगोदादि में अनंत मरण पाता है ।। ३७ ।। (१७) जिनके मिथ्यात्वादि मोह का तीव्र उदय है उन्हें ही कुगुरुओं के प्रति भक्ति-वंदना रूप अनुराग होता है । ।४१।। (१८) मिथ्यादृष्टियों के सम्पदा का उदय देखकर दृढ़ श्रद्धानी जीवों के ये भाव नहीं होते कि यह मिथ्यादृष्टियों का धर्म भी भला है, उल्टे निर्मल श्रद्धान होता है कि 'यह काल - दोष है, भगवान ने ऐसा ही कहा है' । ।४२ ।। (१९) ऐसे जीवों के मिथ्यात्व का उदय है जिनके धर्म में माया है अर्थात् धर्म के किसी अंग का सेवन करते हैं तो अपनी ख्याति, लाभ एवं पूजा का आशय रखते हैं, गाथा - सूत्रों का यथार्थ अभिप्राय नहीं जानते उल्टे मिथ्या अर्थ ग्रहण करते हैं, सूत्र के अतिरिक्त बोलने में जिन्हें शंका नहीं होती यद्वा तद्वा कहते हैं, कुगुरु को पक्षपातवश सुगुरु बतलाते हैं तथा पाप रूप दिवस को पुण्य रूप मानते हैं । ४४ ।। (२०) कई जीव धर्म के इच्छुक होकर कष्ट सहते हैं, आत्मा का दमन 54
SR No.009487
Book TitleUpdesh Siddhant Ratanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Bhandari, Bhagchand Chhajed
PublisherSwadhyaya Premi Sabha Dariyaganj
Publication Year2006
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size540 MB
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