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________________ धिक् धिक् (१) धिक्कार हो उन जीवों को जिन्हें अन्य जीवों की प्रशंसा पाने के लिए अर्थात् समस्त जन मुझे भला कहें इसलिए जिनसूत्र का उल्लंघन करके बोलने में भय नहीं होता । वे अनन्त काल निगोदादि के दुःख पाते हैं । । गाथा ५६ । । (२) धिक्कार हो कर्मों के उदय को जिसके कारण प्राप्त हुए जिनदेव भी जीव को अप्राप्त के समान हो गये क्योंकि उपयोग लगाकर देवादि का भली प्रकार निर्णय नहीं किया । । ६० ।। (३) धिक्कार हो उन पुरुषों के ढीठपने को जो तीन लोक के जीवों को मरते हुए देखकर भी अपनी आत्मा का अनुभव नहीं करते और पापों से उदास नहीं होते । । १०९ ।। (४) धिक्कार हो जीवों के उस खोटे स्नेह को जिसके कारण शब्द सहित रुदन करके और मस्तक - छाती कूटकर नष्ट हुए पदार्थों का शोक करके वे अपने आपको नरक में पटकते हैं । ।११० । । (५) धिक्कार हो उन पापियों में भी अत्यंत पापी जीवों के पण्डितपने को जो बिना कारण ही अज्ञान के गर्व से सूत्र का उल्लंघन करके बोलते हैं । उदर भरने के लिये पाप रूप व्यापार करने वाले तो अधम ही होते हैं परन्तु सूत्र के विरुद्ध बोलने वाले तो उनसे भी अत्यन्त अधम होते हैं । ।१२१ । । 18
SR No.009487
Book TitleUpdesh Siddhant Ratanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Bhandari, Bhagchand Chhajed
PublisherSwadhyaya Premi Sabha Dariyaganj
Publication Year2006
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size540 MB
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