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________________ आमुख अत्यन्त सुन्दर ‘उपदेश सिद्धान्तरत्नमाला' ग्रंथ के प्रकाशन का यह शुभ अवसर हमारे लिए परम हर्ष का विषय है। वर्षों से जिसकी प्रतीक्षा थी वह मंगल घड़ी आखिर अब आ ही गई । ग्रंथ की उत्तमता को देखते हुए उस पर लम्बी प्रस्तावना न लिखकर उसके अच्छे-अच्छे बिन्दु 'पंचम काल की हीनता, धिक् धिक्, धन्य-धन्य आदि कुछ विषयों के माध्यम से लिखे थे जो साथ ही संलग्न हैं। उनके अध्ययन मात्र से ही पूरे ग्रंथ की विषय वस्तु भली प्रकार से ज्ञान में आ जाती है। इसके अतिरिक्त जिन किन्ही गाथाओं पर चित्र बनने संभव हो सके वे भी ग्रंथ के बाद में दिए हैं। और अंत में ग्रंथ के नाम को देखते हुए कि वास्तव में ही यह जिन सिद्धान्त के रत्नों की माला ही है उस माला के कुछ अनमोल रत्न रत्नों के रूप में ही बिखेरे है जिन्हें हम भव्य जीव अपने मानस पटल पर संजोकर अपना मोक्षमार्ग प्रशस्त कर सकें । साथ ही साथ यह भी चाहते हैं कि इस ग्रंथ का अन्यन्त प्रचार प्रसार हो । घर-घर में इसकी प्रति पहुंच कर यह जन-जन की वस्तु बने । अपने किन्हीं व्रत के उद्यापन में या अन्य किन्हीं मांगलिक अवसरों पर हम इसकी 100-100 या 200-200 आदि प्रतियाँ वितरित करके अतिशय पुण्य उपार्जित कर सकते हैं । ग्रंथ के प्रकाशन की एक लंबी कहानी है । सर्वप्रथम श्रीमती विमला जी जैन की सद्भावना से इसका कार्य प्रारंभ हुआ था और फिर दस-बारह वर्ष के लम्बे अरसे में तो बहुत ही भाई बहनों का इसमें हर प्रकार से सहयोग रहा जिसके लिए हम हृदय से उनके आभारी है ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह कार्य वास्तव में उन सबका ही है, हमारा तो इसमें कुछ भी नहीं । शुरु में भाई रत्नचन्द जी फोटो वाले एवं उनके सुपुत्र राजेश जैन ने अपने कम्प्यूटर में चित्र बनवाने की अनुमति प्रदान की फिर भाई रोहित जैन सुपौत्र श्री नन्नूमल जी ने कम्प्यूटर सामग्री दी और श्रीमती पूनम राकेश जैन एवं परिवार से तो पग-पग पर अविरल सहायता मिलती ही रही है । स्वर्गीय पं० श्री देवेन्द्र कुमार जी शास्त्री नीमच वालों ने ग्रंथ की प्राकृत गाथाओं की शुद्धि में योगदान दिया। भाई अजय जैन, उनकी मातुः श्री श्रीमती पुष्पा जैन एवं श्रीमान सतीश चन्द्र जैन के (कम्प्यूटर इंजीनियरों के निःस्वार्थ) सहयोग बिना तो कार्य किसी भी तरह से सम्पन्न हो ही नहीं सकता था । और श्री हुकुम चन्द जी जैन चैत्यालय 7/33 अन्सारी रोड, दरियागंज, जहाँ पर बैठकर भाई अनिल यादव ने सारे ही कम्प्यूटर कार्य एवं चित्रों की भावनापूर्ण प्रस्तुति की उसे भी हम कैसे विस्मृत कर सकते हैं। भाई शैलेन्द्र कुमार सुपौत्र श्री महताबसिंह जी जैन जौहरी एवं भाई श्रेयांस कुमार सुपुत्र श्री शीतल प्रसाद जी का अर्थ एवं भावनात्मक सहयोग भी प्रशंसनीय है। इस लम्बी अवधि में किन्हीं भी सहधर्मियों की किसी भी भावना की हमारे निमित्त से क्षति हुई हो तो उसके लिए हार्दिक क्षमा याचना करते हैं। अंत में वीर प्रभु से यही प्रार्थना है कि अन्य भी वज्रदंत चक्रवर्ती बारहमासा व अष्टपाहुड ढूंढारी एवं हिन्दी अनुवाद आदि ग्रंथों का प्रकाशन कार्य भी शीघ्र ही सम्पन्न हो । 15 कु० कुन्दलता एम० ए० एल० एल० बी० कु० आभा एम० एस० सी० बी० एड०
SR No.009487
Book TitleUpdesh Siddhant Ratanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Bhandari, Bhagchand Chhajed
PublisherSwadhyaya Premi Sabha Dariyaganj
Publication Year2006
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size540 MB
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