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________________ श्री नवकार महामंत्र- करप लक्ष्य ध्यानके सम्बन्धसे अलक्ष्य ध्यान करना, स्थूल ध्यानसे सूक्ष्म ध्यानका चिन्तवन करना, सालम्वनसे निरालम्बन होना इस प्रकार अभ्यास करने से तत्त्वज्ञ योगी शीघ्र ही तत्व प्राप्त कर लेते हैं । १०६ उपरोक्त कथनानुसार चार तरहके ध्यानामृतमें मग्न होनेवाले योगीका मन जगत् के तत्त्वोंको साक्षात करके आत्माकी शुद्धि कर लेता है । धर्म ध्यान प्रकरण आज्ञा, अपाय, विपाक, और संस्थानका चिन्तवन करनेसे ध्येयके भेद सहित धर्म ध्यानके चार प्रकार बताए गए जिनका संक्षेप वर्णन इस प्रकार है । ( १ ) आज्ञा विचय ध्यान उसको कहते हैं कि सर्वज्ञ भगवानकी अवाधित आज्ञा समक्ष रख कर तत्त्व बुद्धिसे अर्थ चिन्तवन करना, मनन करना, और तदनुसार वर्तन करना । जिनेश्वर भगवानके वचन सूक्ष्म हैं, जो किसीभी प्रकारकी युक्तिसे या हेतुसे खण्डित नही हो सकते । जिन भगवानके वचन सर्वदा सत्य होते हैं इस लिए गृहण करने योग्य हैं, और
SR No.009486
Book TitleNavkar Mahamantra Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherChandanmal Nagori
Publication Year1942
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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